केन्ज़ गाईड | A Guide To Keynes

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ केन्‍ज गाईड মান লা ল্য জীন (5০৪০) उपादान आय (एतत -प८णप९) के उस प्रवाह में है जो उपादन प्रत्रियाओ ([70००९६७) द्वारा उत्पन्न होते हैं! अब तक उपयोग मे न लाये गये साधनों को कार्यो पर लगाने से उत्पादन बढ़ता है और झ्राय में भी वृद्धि होती है। इस प्रकार से आय और निपज (०७५७७४) का एक चत्नीय प्रवाह (णाणा।गः 109 ) बन जाता है| इस प्रवाह में वृद्धि होने से जिन साधनों को कार्यों पर लगाया जाता है, उनका खर्च स्वय ही निकल श्राता है। इसका कारण यह है कि सतुलित अवस्थाओ्रो मे आय प्रवाह (00023 ऽध) की राशि मे उतनी ही बुद्धि हो जाती है जितनी राशि उपज (9700ए९८४७) की वित्नी के कारण आय-प्रवाह मे से निकल आती है । कोई भी नवीन उत्पादन प्रक्रिया इस प्रकार कार्यो पर लगे उपादावों (9৭০7) को आय प्रदान करके उतनी ही माग उत्पन्न कर देती है, जितना कि उस प्रक्रिया से सम्भरण (80700)9) बढता है । “से” के बाजार नियम के सस्थापित (०४5४०) कथन ने इस विचार की पष्ठि की स्वतत्र-मूल्य-पद्धति (76० [71०९-४३ ४६७०) में बढती हुई जनसस्या के लिये व्यवस्था हो जाती है और पूंजी मे वृद्धि होती है । किसी विकासशील समाज मे, तयी फर्में तथा नये कर्मचारी दूसरो को बिना निष्का|सत किये ही अपनो उपज के बदले मे उत्पादन प्रक्रिया में अपना स्थान बना लेते है। इस अवस्था में बाजार को ऐसा स्थिर तथा सीमित नहीं मान लिया जाता, जिसमे विस्तार की क्षमता न हो । बाजार उतना ही बडा बन जाता है, जितनी कि बाजार मे बिक्री के लिये आये हुए उपज की मात्रा होती है । सम्भरण अपनी माग स्वय ही बना लेता है । यदि व्यापक हूप से देखा जाये तो यह्‌ कथन मुरयत विनिमय प्रथं व्यवस्था को चित्रित करत। है 1 परन्तु श्राथिक विचारो का इतिदास इस बात को बारम्वार प्रदर्शित करता है कि किस प्रकार एक महान्‌ जीता-जागता सिद्धान्त, जब विवाद के सागर में उछाला जाता है, तो ग्रपनी चैतन्यता गव। बैठता है । कई बार ऐसा होतग है कि इन सिद्धा तो को ऐसी जटिल समस्याओं का विश्लेषण करने के लिये प्रयोग मे लाया जाता दै, जिनके लिये ये सिद्धान्त श्रनुपयुक्त होते है। जब भी ऐसा किया जाता है तो निश्चित रूप से भ्रान्तिजनक निष्क्पं निकलते है। यही बात “से” के बाजार नियम के विपय मे हुई । ऐसे प्रारम्भिक विद्याथियो पर जो 'केन्जवादी क्रान्ति! पर वर्तमान साहित्य को पढ़ते हैं, एेसा प्रभाव पडने की सभावना है कि 1080 तक जव केन्न की जनरल ध्योरी नामक पुस्तक प्रकाशित हुई, सभी छोटे-वडे अ्रवेश्ञास्त्रियो ने एक दृढ़ परम्परा- निष्ठ सस्थापक मीर्चा (0प110905 2००छट्य। ०६) सा वना लिया था। परन्तु यह बात सत्य नहीं है। प्रथम विश्व-युद्ध के आस पास जिन अर्थशास्त्रियो




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