एकता अखंडता की तस्वीरे | Ekta Akhandata Ki Tasviren

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Ekta Akhandata Ki Tasviren by शरद जोशी - Sharad Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पत्थर बोला १७ को याद आ गई है। सुनोगे मेरे अतीत की कहानी । हो सकता है, तुम यह कहो कि अतीत की कहानी सुनकर क्या करूगा, पर नहीं, अतीत की कहानो सुनने से तुम्हे लाभ होगा, तुम्हारा करयाण होगा। तुम हिसा और पाप से अपने को पृथक करके मानवता के माग प्र चल सकोगे, अपने आपको समझ सकोगे ।” पत्थरका टुकडा कहते-कहते मौन हो गया । मैं कुछ उत्तर न दे सका! देता भी तो केषा देता ? पत्थर के टुबडे के स्वरो ने मेरे कठ को ही नही, मेरे प्राणो को भी जकड लिया था। बुछ क्षणो तक मौन रहने के पश्चात्‌ पत्थर का टुकड़ा पुन चोला--/तुम्हारा मौन | तुम अवश्य मेरे अतीत की कहानी सुनना चाहते हो | तो सुनो, मेरे अतीत की कहानी-- “हाई हज़ार वर्ष पूर्व वी वात है। मैं एक बौद्ध मदिर क॑ उस चयूतरे में लगा हुआ था, जिस पर गौतम बुद्ध बैठकर लाखो मनुप्या को अहिसा, सचाई और प्रेम का सदेश दिया करते ये। मैंने गौतम वृद्ध का देखा है, उनकी अमृत वाणियो को भी सुना है। में उनकी पवित्र गाथाओ को जानता हू। उही मे से एक गाथा तुम्हे सुना रहा ह-- दुभिक्ष का दानव मुह फंलाकर चारो ओर दीड रहाया, यावकै-गाव उजड गए थे, नगर-के-नगर वीरान हो गए ये। दिन मेही श्रगाल गौर भेडिये वस्तियो मे घुस जाते ये, भूख की पीडा से मरे हुए मनुप्यो को घसीटकर जगलो मे उठा ले जाते थे । चारो ओर सदन, हाहाकार और चीत्कार। गौतम बुद्ध को आत्मा विकल हो उठी। वे हाथ मे पात्र लेकर अकाल-पीडितो के लिए गली-गली मे घूमकर भिक्षा मागने लगे) एक पहर दिन चढ चुका था। गौतम बुद्ध चबूतरे पर बैठे हुए थे, स्त्री पुरुषो से करुणाभरे स्वरो से कह रहे थे - , अकाल का दानव बस्तियो को उजाड रहा है, नगरो को




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