विश्व इतिहास की झलक दूसरा खंड | Vishv Itihas Ki Jhalak Khand 2
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
56 MB
कुल पष्ठ :
727
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ईरान में साम्राज्यशाही और राष्ट्रीयता ६९९
और पढ़े-लिखें लोग कर 1 १९०४ ई० में ज़ारशाही रूस पर जापान की
विजय का ईरानी राष्ट्रवादियों पर जबर्दस्त प्रभाव पड़ा और उनमे उत्तेजना
फंल गई । इसके दो सबब थे । एक तो यह कि यूरोपीय शक्ति पर एक एशियाई
शक्ति की विजय थी; दसरे ज़ारशाही रूस ईरान के लिए एक हमलावर और
दुःखदायी पडौसी धा । १९०५ ई० की रूसी क्रान्ति हालांकि असफल रही और
बेरहमी से कुचल दी गई, छेकिन उसने ईरानी राष्ट्रवादियों का जोश और कुछ
कर गुज़रने का हौसछा और भी बढ़ा दिया | शाह पर इतने जार का दबाव पड़ा
कि मर्जी न होते हुए भी उसे १९०६ ई० में छोकतन्त्री संविधान के लिए राजी
होना पड़ा । मजलिस' नामक राष्ट्रीय विधानसभा क़ायम हुई और एसा दिखाई
देने लगा कि ईरान की क्रान्ति सफल हो गई ।
पर मुसीबत सामने खड़ी थी | शाह का अपने-आपको मिटाने का कोई
इरादा नही था । और रूसी व अग्नेज ऐसे लोकतन्त्री ईरान को कभी पसन्द नही
कर सकते थे, जो मज़बत होकर उनके लिए सिर-दर्द बन जाय । थाह में और
मजलिस में झगड़ा हुआ और शाह ने सचमुच अपनी ही पालंमेण्ट पर बमबारी
कर दी । मगर सेना के सिपाही और जनता मजलिस और राष्ट्रवादियों के साथ
थे, और थाह को सिर्फ़ रूसी सिपाहियों ने ही बचाया । रूस और इग्लैण्ड दोनो
किसी-न-किसी बहाने से, आम तौर पर अपनी प्रजा की रक्षा का बहाना बनाकर,
अपने सिपाही लाकर बेठा देते थे । ईरानियों को डराने-धमकाने के लिए रूसियों
के पास खूख़ार क़ज्जाक सिपाही और इबग्लेण्ड के पास भारतीय सिपाही ध,
हालांकि हमारा उनसे कोई झगड़ा नही था ।
ईरान बड़ी कठिनाइयों में था। उसके पास रुपया नहीं था और लोगों
की हालत खराब थी । मजलिस हालत को सुधारने की जी-तोड़ कोशिश करती
थी, लेकिन उसकी ज़्यादातर कोशिश रूसी या ब्रिटिश या दोनों के विरोध के
सबब से बीन में ही विफल कर दी जाती थी । आखिरकार ईरानियों ने अमेरिका
से मदद मांगी और एक काबिल अमेरिकी वित्त-विशेषज्ञ को अपनी वित्तीय
व्यवस्था सुधारने के लिए मुकरंर किया । इसका नाम मोर्गन शुस्टर था । इसने
अपने काम में भरसक कोशिश की, लेकिन इसे सदा रूसी या ब्रिटिश विरोध
की ठोस दीवारों से टक्कर लेनी पड़ती थी । अन्त में तग आकर और निराश
होकर वह ईरान छोड़कर घर चला गया । बाद मे शस्टर ने एक किताब लिखी
जिसमें यह बतलाया कि रूसी और ब्रिटिश साम्राज्यश्ाहियां ईरान का खन किस
तरह चूस रही ह। इस किताब का नाम ईरान का गला घोटना (17८
50ब7981178 ० एल$2.) खास मतलब रखता हं ओर एक कहानी कहता है ।
एसा मालूम होन लगा कि ईरानी राज्य की स्वाधीन टस्ती मिटनवाखी ह् ।
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