धर्मनिरपेक्षवाद और भारतीय प्रजातंत्र | Dharmanirapekshavad Aur Bharatiy Prajatantra
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)।প্রশননিহইজঅলা का ऐतिहासिक सदर्भ / 3
नागरिको के व्यक्तिगत तिजी जीवन मे निषेध करता है। बैडलाफ के मॉडल अर्थात् मार्क्स
के साम्यवादी परपराओ के धर्मनिरपेक्षवाद को साम्यवादी देशो में अपनाया गया है,
जबकि होल्योक के मॉडल अर्थात् पश्चिम के उदारवादी प्रजातात्रिक परपराओ के
घर्मनिरपेक्षवाद को पश्चिमी देशों तथा भारत मे अनेक विभिन्नताओ के साथ अपनाया
गया है। साम्यदादी धर्मनिरपेक्षवाद का दृष्टिकोण आत्यतिक है। इसके विपरीत पश्चिम
के उदारवादी परपराओ मे धर्मनिरपेक्षवाद का अर्थ ईश्वर विरोधी अथवा
नास्तिकतावादी नही है बल्कि इसे एक ऐसे सक्रिय माध्यम के रूप मे देखा जाता है जो कि
मनुष्य को अपनी प्रकृति के पूर्ण विकास के लिए उत्साहित करता है यह मनुष्य के
व्यक्तित्व का भौतिक और शारीरिक के अतिरिक्त जीवन के अन्य पहलुओ के विकास का
साधन है अर्थात् धर्मनिरपेक्षदाद मे वे सभी मानव विचार एवं क्रियाए आ जाती हैं
जिनका बिना दैदी अथवा अदृश्य शक्तियो का सहारा लिये मानव कल्याण प्राप्त करना
लक्ष्य होता है 1
धर्मनिरपेक्ष राज्य मे राज्य धर्म से पृथक् तथा असबद्ध होता है। राज्य भौर घर्म--
दोनों का अपना अलग-अलग क्षेत्र होता है, व्यक्ति की नागरिकता धर्म पर आधारित नही
होती है। इन उक्त जटिलताओ को ध्यान मे रखते हुए डी ० ई ० स्मिथ* ने अपने प्रशसनीय
तथा अनुबोधक अध्ययन मे धर्मनिरपेक्ष राज्य की व्यवहार्यं परिभाषा दी है । उनके
अनुप्तार, “घर्मनिरपेक्ष राज्य एक ऐसा राज्य है जो व्यक्तिगत व सामूहिक रूप मे धार्मिक
स्वतत्रता की सुरक्षा करता है, व्यक्ति को किसी धार्मिक भेदभाव के बिना एक नागरिक के
रूप में देखता है, सवैधानिक दृष्टि मे किमी घर्म विशेष से असयुक्त रहता है। यह किसी
धर्म के प्रसार मे सहायक या बाधक नहीं होता । सूक्ष्म परीक्षण से यह देखा जा सकता है
कि धर्मनिरषेदा राज्य की धारणा मे तीन विभिन्न परतु अत सवधित सबंधो के
स्तर--राज्य, धर्म और ब्यक्ति--निहित हैं । सबधो के तीन ममूह हैं
1 धर्म और व्यक्ति (धर्म को स्वतन्त्रता)
2 राज्य मौर व्यक्ति (नागरिकता)
3 राज्य और धर्म ( राज्य और धर्म का पृचक्करण)
धर्मनिरपेक्ष राज्य व्यक्ति को एक नागरिक के रूप मे देखता है न कि किसी विशेष
धार्मिक समूह के सदस्य के रूप मे । नागरिकता की शर्तों को निर्धारित करते समय धर्म
अप्रासगिक होता है। अधिकार और कर्तव्य व्यक्ति के धार्मिक विश्वासो से प्रभावित नहीं
होते । स्मिय के अनुसार घर्मेनिरपेक्ष राज्य ब्तो मूलभूत मान्यता यह होतो है कि उसका
धार्मिक भामलो से कोई लेता-देना नही होता है । इससे क्सी भी प्रकार का विचलन
युक्तियुक्त घर्मनिरपेक्ष आधारो पर अवज्य उचित होना चाहिए। स्मिथ वी धर्मनिरपेक्ष
राज्य की अवधारणा पूर्णतया आदर्श कही जा भकती है। जो सही अर्थों मे अभी तक किसी
भी देश मे प्राप्त नहों की जा सकी है । फिर भी इस परिभाषा को भी अपर्याप्तता वी
आलोचना का शिकार होना पड़ा है। अगर हमर तौन सिद्धातों, जो स्मिथ की धर्मनिरपेक्ष
राज्य की व्यवहायें परिभाषा मे समाविष्ट होते हैं, पर विचार करें--धर्म को स्वतत्रता
(व्यक्तिगत तथा सामूहिक ) , सदधो मे समानता (राज्य को तटस्थता ) -- तो हम पाते
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