ऐतिहासिक भौतिकवाद | Etihaasik Bhautikavaad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ ऐतिहासिक भौतिकवाद अपनी सज्ञान चेष्टा से उन परिस्थितियों मे परिवतंन करता रहता हं । हर युग का सबसे प्रगतिशील क्रान्तिकारी रूप से सोचनेवाला व्यक्ति भी बहुत अनुकूल परिस्थितियो में भी अपनी सारी बातों को कराने में समर्थ नहीं होता, किन्तु साथ ही वह कृ भी नही केरा पाता हु, यह भी बात सही नहीं हं । माक्सं के उग्रसमाजवादी विचार उनके जीवनकाल मे कोई भी समाजवादी क्रान्ति कराने में समर्थ नही हुए (पेरिसकम्यून जिस क्रान्ति के फलस्वरूप स्थापित हुआ था, उसमें माक्संवादियों का हाथ बहुत कम था), किन्तु इसलिए उनके विचार व्यर्थ गये ऐसा एक अहमक ही कह सकता है। समय से पूर्व आये हुए क्रान्तिकारी विचारों को तब तक प्रतीक्षा करनी पडती हं, जब तक उनके लिए समय न आ जाय, अर्थात्‌ जब तक एसी परिस्थितियां न आ जाये, जिनमें उन विचारों का पनपना सम्भव हो । उस समय तक वे विचार पुस्तकों में या गाथाओं में बन्द पड़े रहते हैं, था बीज की तरह गुप्तरूप से लोगों की दृष्टि के अन्तराल में पड़े रहते हैं, और फिर अनुकूल जमीन और आबोहवा थाने पर पुस्तकों से उनका पुनरुद्धार किया जाता है, तथा वे अंकुररूप में अनुकूल परिस्थिति पाकर पावाल- लोक से प्रकट हो जाते हें। 'महान्‌ पुरुष समाज पर तभी प्रभाव डाल पाते हें, जब समाज उनके लिए तेयार है। यदि समाज उनके लिए तैयार नहीं है, तो वे महापुरुष नही कहराते, बल्कि असफल क्रान्तिकारी या स्वप्नद्रष्टा कहलाते हं ।' उपलब्ध साधन तथा सम्बन्ध, ओर मनुष्य की सज्ञानचेष्टा के पारस्परिक धात-प्रतिघात से ही इतिहास का पट हमारे समक्ष खुलता चला जाता हू। तभी तो माक्सं ने अपने १८वाँ व्रूमेयर' मे लृई बोनापाटं को इतना महत्त्व नहीं दिया मानो उसी ने १८४८-५१ की घटनाओं को अपनी इच्छा पर ढाला हो, साथ ही उन्होंने यह भी नहीं दिखलाथा कि उसका कोई भाग ही नही था। फ्रांस में १८४८ में जो रगमंच तैयार है, उस पर लुई केवल एक ऐसे मामूली अभि- नेता की भाँति नहीं है, जिसके लिए पहले से सब घटनाएँ तथा बातचीत तैयार है, बल्कि वह एक प्रधान अभिनेता की तरह हैँ जो खेल के नियमों तथा सम्भावनाओं के दायरे मे रंगमंच पर अपना पाटं एक हद तक तयार करता जाता हं, ओर खेलता जाता ह । वह उस नाटककार की भांति हं जो अभिनेता भी ह ओर खेलने के दौरान मे उसमे थोडा-बहूत परिवतंन कर सक्ता ह ।




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