कथाकार प्रेमचंद | Kathakaar Premchand

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Kathakaar Premchand by मन्मथनाथ गुप्त - Manmathnath Guptaरमेन्द्रनाथ वर्मा -Ramendranath Varma

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मन्मथनाथ गुप्त - Manmathnath Gupta

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रमेन्द्रनाथ वर्मा -Ramendranath Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रे मचन्द्‌ के पडले | শি इस प्रकार आधुनिक उपन्यास की श्रर्थात्‌ पृंजीवादीःयुगे'्के उपन्यास की सबसे बढ़ी विशेषता यह है किं वहं व्यक्ति को महत्वं देकर शुरू करता है। एूँजीवाद व्यक्तिवाद को लेकर द्वी आगे आया है। हासशील सम्मन्तवाद के विरुद्ध उसने न केवल अपने वर्ग को बल्कि श्रन्थ खथ वर्गों को व्यक्तिवाद का नारा देकर पूंजीवाद के विरुद्ध संगठित किया, है । यह दृष्टव्य है कि शुरू-शुरू के कुछ उपन्यासो में आत्मकथा- मूलक ढंग जोरों के साथ अश्रपनाया गया था। राबिन्सन क्रो (१७१६); गुलीवर की यान्राये; (१७२७) शै४प०७ 1,6४००॥ (१७३२), 12112076 (१७३५) श्रौर श्रामतौर पर मारीवो (149. ४०४) श्रौर श्रावे पर वोस्त (726५०8६) की ख रचनायें आत्मकथा- मूलक थीं | इन उपन्यासों में वर्णन यो किया जाता था कि मैंने यों देखा श्रौर मैंने यों वर्णन किया ।४ इसी प्रकार पत्नो के जरिये से जो उपन्यास का तरीका चला, उसे भी , हम, आत्मकथामूलक कह सकते हैं, अवश्य पत्चोपन्यास में फेवल एक मैं न होकर दो में के होने की गुज्ञादश हश । दृन्तीयर ने १७४८ भँ लिखित (1211388 {1917106 तथा १७६२ मँ लिखित 19 }१०८१७11€ प्ल ०5€ करो मख्य उदाहरण के रूप में पेश किया है | इस प्रकार एक मैं से दो मैं और फिर बहुत से दृष्टिकोण से एक चीज को देखने की परिारी का सूत्रपातत हुआ,। इस तरह से हम बिल्कुल आधुनिक उपन्यास में पहुँच जाते हैं | अति- श्राधुनिक कथित मनोविज्ञान प्रधान उपन्यासमेंयद जो कोशिश की जाती है कि मनुष्य के मनोविज्ञान से ही सारी घटनायें प्राप्त की जायें, यह इसी रुख की चरम सीमा है। श्रवश्य हीं मनुष्य का मन एक बहुत बहा ८९610 है, उपन्यास लेखक को या कवि को श्रवश्य उसका ध्यान रखना पड़ेगा, किन्तु यई कुचेष्टा करना कि श्राषपास का समाज , খালু, 90. 8., 9 18




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