नये रंग : नये ढंग | Naye Rang Naye Dhang

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Naye Rang Naye Dhang by लक्ष्मीचन्द्र जैन - Laxmichandra jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजेन्द्र बान एक वर्ष और पूरा हो गया जो दूसरा शुरू हुआ हैं वह भी एक दिन इसी तरह पूरा हो जायेगा । और फिर तीसरा, फिर चौथा”! पुराणोंमें कहा है कि स्वर्गमें देवताओंकी अवधि ज्यों-ज्यों चुकनेको आती है, गलेकी माला मुरझाने लगती हैँ । एक-एक फूल कुम्हलाता है और हृदय मुरझाता जाता है । एक दिन सब राज-पाट, वेभव, यशोगान समाप्त हो जाता हैं। पर, फिर उनकी आयु भी तो समाप्त हो जाती है। जन- तन्त्रवादका यह्‌ कंसा अभिशाप ह कि केवल राजपाट, वभव ओर यशोगान ही समाप्त होता हं, व्यक्ति समाप्त नहीं होता ? जब रजामोका एकंछत्र राज्य होता था, तो वे अपने पुत्रको राज्य- जो वे स्वयं न कह पाये ! ११




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