भारतीय इतिहासपुनर्लेखन क्यों एवं पुराणों में इतिहासविवेक | Bhartiya Itihaspurnlekhan Kyo Avam Purano Mein Itihasvivek
श्रेणी : भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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No Information available about कुँवरलाल जैन व्यासशिष्य - Kunwarlal Jain Vyasashishya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारतीय इतिहास की विक्ृोति के कारण १५
पू० बमाई थी और इसी के निकट लौहस्तम्भ पर चन्द्रगुप्त द्वितीय, विक्रमादित्य
(द्वितीय) ने अपनी विजयगाथा अंकित कराई।
इसी प्रकार आगरा मे तथाकथित ताजमहल निदचय ही प्राचीन राजपूत
शासकों का महल (प्रासाद) था, जिसको शाहजहाँ ने स्वनिमित घोषित करवा दिया ।
प्राचीन हिन्दूमन्दिरों को तोड़कर मुस्लिमों ने किस प्रकार मस्जिदें बनायीं, यह तथ्य
किसी ` विज्ञ इतिहास पाठक से अज्ञात नहीं हैः इसका सर्वाधिक प्रसिद्ध उदाहरण
वाराणसी में विश्वनाथ का स्वणं मन्दिर दहै, जिसका एक बड़ा भाग ञभी भी मस्जिद
के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। अत: श्री ओक के इस मत्त से कोई भी वैमत्य
नहीं होता चाहिए कि बर्बर, असभ्य ओर असंस्कृत मूस्लिम माक्रान्ता ऐसे श्रेष्ठ भवनों
को बनाना जानते ही नहीं थे, वे केवल ध्वंसकर्ता थे, उन. आक्रांताओं के पास ऐसे
श्रेष्ठभवनों के बनाने का न समय था, न साधन और न ही कौशल । उन्होंने प्राचीन
भवनों को ध्वंस ही अधिक किया और उनको विकृत करके उस पर आधिपत्य जमा
लिया, वे स्वयं वहां के शिल्पियो को बलपवं क अपने देशों में ले गये जहाँ उन्होंने भारतीय
अनुकुत्ति पर भवनादि बनवाये। अतः कश्मीर के निशात भौर शालिमार (হালি
मागं ) उद्यान, दिल्ली आगरा के लालकिले, तथाकथित कुतुबमीनार तथा इसी प्रकार के
सम्पूर्ण भारतवर्ष में बिखरे हुए शतशः भवनों का निर्माण सहसो वर्षो पव॑ भारतीयों
ने ही किया था, जिनको उत्तरकालीन मुस्लिम आक्रान्ताओं ने आधिपत्य करके
स्वनिर्मित घोषित किया । यहं भारतीय इतिहास मे महान् जालसाजी (विकृति) का
एक बड़ा भारी उदाहरण माना जाना चाहिए और निश्चय ही इस विकति का
निराकरण होना चाहिए। मुस्लिम शासकों के पदचात् अंग्रेजी शासन के स्तम्भ, मैकाले
की योजना के अन्तर्गत, भारतीय इतिहास एवं वाङ्मय के सम्बन्ध मेँ पार्चात्य षड्यन्त्र
की कहानी संक्षेप में लिखेंगे ।
पाश्चात्यों को संस्कृतविद्या से परिचय--पाइ्चात्यषड्यन्त्रकारी ईसाईलेखकों
ने भारतीयसाहित्य विशेषतः संस्कृतवाइुमय का अध्ययत्त इसलिएं किया कि वे यहाँ के
रीति-रिवाजों एवं संस्कृति को जानकर, उस पर प्रहार कर सकें, जिससे कि मैकाले'
की योजनानुसार भारतीयों को काले रंग का अंग्रेज (ईसाई) बनाया जा सके, जिससे
ब्रिटिशशासन भारत मे चिरस्थायी हो सके । मैकडानल ने संस्कृत साष्टित्य का इतिहासं
(अंग्रेजी मे) की भूमिका में स्पष्ट लिखा है-- ८ 15 प००ण्छान्तार & 90100510
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109৩০ & 796001191: 117051950 001: ठि0४ं॥) ए४ा०7?, मेकडानल को तात्पय यह है कि.
उन्होंने 'संस्कृतसाहित्य का इतिहास' इसलिये नहीं लिखा कि इसमें कोई महान गुण-
वत्ता है, बलिक इसलिए लिखा कि अंग्रेजगण भारतीयों की पोलपद्री जानकर उन पर
चिरस्थायी शासन कर सकं । केवल निहित स्वोर्थ के कारण अंग्रेजों ने संस्कृत का
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