प्रकृति और हिंदी काव्य | Prakrity Aur Hindi Kabya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40 MB
कुल पष्ठ :
545
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)4८ 9
ह २-+हम अपने प्रस्तुत विषय में जिस प्रकृति और काभ्य् के
विषय पर विचार करने जा रहे हैं, उनके बीच मानव की स्थिति
निश्चित ' है-। मानव को लेकर ही इन दोनों का
मालव को सध्य , उबन्ध सिद्ध है। आगे की विवेचना में हम देखेंगे
বিটি कि.अपनी मध्य-स्थिति के कारण मानव इन दोनों
के संबन्ध की व्याख्या में अधिक महत्वपूर्ण है।यददी कारण है कि
प्रथम भाग 'की विवेचना मानव और प्रकृति के संबन्ध से प्रारम्भ हो
कर प्रकृति ओर काव्य के संबन्ध की ओर अग्रसर हुईं है । आगे हम
देख सकेंगे कि मानव अपने विकास में प्रकृति से प्ररणा प्राप्त करता
रहा है; और काव्य मानव के विकसित मानस की अभिव्यक्ति है।
यही प्रकृति और काव्य के संबन्धों का आधार है। दूसरे भाग में
युग संबन्धी अनेक व्याख्याए इसी दृष्टि से की गई हैं जिनके माध्यम
से विषयं संबन्धी प्रश्नों का उत्तर मिल सका है। |
6 ३--अस्येक क्षेत्र में जहाँ सिद्धान्त की स्थापना की जाती है दो
रीतियाँ काम में लाई जाती ई,। निगमन (भ्लौ) के द्वारा विशेप्र
९ , सिद्धान्त को साधारण सत्यां कै श्राधार स्थापित
काय्य की सीमा कः करते हैं और विगमन (पपलणण) मे साधारण
निदेश सत्यो के माध्यम से विशेष सिद्धान्तों तक पहुँचते
हैं| इस काय्य में इन दोनों ही रीतियों को प्रयोगमे लाया. गया ই।
कल्ला और साहित्य के चेच मे यह आवश्यक भी है। इनमें
साधरण सत्यां की स्थिति श्रधिक निश्चित नदीं है यह बहुत कुड
कखन शयेर प्रस्तुतीकरण प्रर निमर है। इसी कारण प्रथम
माय में प्रकृति और काव्य के विषय की सानव से संबन्धित
विश्न शारो के साद्य पर विवेचना की गई है। इस विवेचना में
काव्य ओर प्रकृति के संबन्ध को दशन, तत्त्ववाद, मानसशासत्र, मानव-
शाख तथा सोन्दय्य-शासत्र आदि, के माध्यस से सेमभने का प्रयास
किया गया है। इस प्रणाली में निममन का आधार अधिक लिया
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