आदवन की कहानियां | Aadavan Kii Kahaaniyaan

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Aadavan Kii Kahaaniyaan by इन्दिरा पार्थसारथी - Indira Parthasarathy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहले रात आएगी ड ऐमां-ऐ मां अपने नाच से खींच लिया तूने नृत्य संचालन जग जीवन का संचालन । उस दिन कोदै को उसने इसी रूप में देखा था। जीवन की पूर्णता की ओर ले जाने वाली सुंदर प्रेरक शक्ति के रूप में उसे देखा था। स्वयं याचित पुरुष बिंब को कसकर देखने की कसौटी के रूप में उसे देखा था । जो उपलब्धि हुई वह आधुनिकता की परिभाषा नहीं थी बल्कि प्राचीनता की व्याख्या थी। अर्थात प्रेम की परिभाषा नहीं नफरत की विवेचना । प्यार ही नफरत को समझने में काम आता है। अजीब बात है यह लो कॉफी । मां ने कॉफी का गिलास बढ़ाया और उसने हाथ आगे बढ़ाया । उसे लगा एकाएक सौ-डेट़-सौ साल पीछे चला गया है वह । उसके दादा या परदादा कमरे के अंदर आराम कुर्सी पर बैठे हैं और दादी या परदादी पीतल के गिलास में कॉफी के साथ खड़ी है। उन दिनों स्टील का प्रचलन नहीं था । पीतल के बर्तनों का--भगोना हाड़ी प्याला लोटा इत्यादि का-अपना एक निराला सुवास होता है। लेकिन शीशे के गिलासों में कोई गंध नहीं होती जब तक उसमें द्हिस्की न भरी जाए । पिताजी भी कुछ ऐसे ही थे शीशे के गिलास जैसे। जब वह छोटा था अक्सर एक सुगंध को पहचानता था कहा करता था पिताजी की सुगंध...पिताजी की सुगंध । अर्थात पिताजी जब कभी उसे चूमते थे उसे उसी गंघ का एहसास होता था । बहुत दिनों के बाद ही उसे मालूम हुआ कि वह गंघ द्हिस्की की तीखी गंघ थी । इस गंध को मां खुले दिल से स्वीकार कर न पाई होगी । शायद यही उन दोनों के बीच अनबन और दरार का कारण रहा होगा । या मां की सुगंध से पिता को जो विकर्षण अनुभव होने लगा क्या वही असली समस्या थी? चमेली की सुगंध इस महकते फूल को अपनी वेणी में लगाने के अधिकार से मां वंचित हो गई । इस बात को पांच साल पूरे हो गए हैं । कोदै जिसे फूल लगाने का अधिकार है इस ओर बिल्कुल ध्यान नहीं देती । इसका एक कारण है। चमेली की सुगंध से उसे एलर्जी है। जिसका नाम कोदै है उसे फूलों से एलर्जी है अजीब तमाशा है डैडी उषा भागती हुई आई और उसके पैरों से लिपट गई। पेरियाल्वार की सुपुत्री गोदा जो आण्डाल दक्षिण की मीरा नाम से प्रसिद्ध हुई फूलों से बहुत प्रेम करती थी ।




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