साहित्य सर्जन | Sahitya Sarjana

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Sahitya Sarjana by इलाचंद्र जोशी - Ilachandra Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कला और नीति १७ श्रभिनव विलास देखकर, उसका मूल आदर्श न समझने पर भी, हमें सुख प्राप्त होता है । राम की प्रतिभा अपूर्व तथा सुबिस्तृत थी | राम तत्काल बन गमन के लिये क्‍यों तत्पर हो गए १ पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए उन्होंने ऐसा नहीं किया | वह पिता की इच्छा भली-भाँत जानते थे । वह जानते थे, पिता उन्हें बन भेजना नही चाहते श्रौर यथाशक्ति उन्हें उनके ऐसा करने से रोकेगे | पर प्रतिमा किसी भी यात पर सूदमातिसूदप न्यसे विचार करके बाल की खाल निकालना नही चाहती । इसीजिये लोग उसका इतना सम्मान करते हैं। वह एक मलक मे समस्त स्थिति को समभर श्रपना कर्तव्य निर्धारण कर लेती र ग्रगरेजी मे जये २१118 লা \{५ ० एते (मन की उन्नत श्रचस्था ) कहते ह, राम की मानसिक स्थिति सर्वदा, सत्र समय वैसी ही “रहती थी । उनकी प्रतिभा की विपुलता अपने श्राप में आाबद्ध न द्दोकर সনিন্বব্য नाना रुपो में, नाना क्षेत्रों में, अपने को विस्तारित करने के लिए उ मुस्ब रहा करती थी । उसकी गति प्रतिक्षण बतेगमान को भेटकर सुदूर भविष्य की ओर प्रवाहित होती रद्दती थी। पति-पत्नी, पिता-पुत्र तथा भाई भाई के च्रीच तुच्छु स्वार्थ की छीना-ऋग्टी की झ्त्यन्त हास्यकर तथा नीच प्रश्नत्ति के प्राबल्य नथा विस्तृत की श्राशका करके उन्होने प्मत्यन्त प्रमन्नता तथा चू कठिन दृदुता कै साथ मदत्‌ त्याग स्वीकार किया और अपने रह में घनभूत स्वार्थ भाव को, त्याग के क्सणा- विगलित रस से ब्रह्मफर, साफ कर दिया) उन्होंने पिता का प्रण निभाया, इस ब्रात पर हमें उत्तनी श्रद्धा नहीं होती, जितनी इस बात पर विचार करने से कि उन्होंने इन स्वार्थ-मग्न उवार के प्रतिदिन के व्यवद्वार की यवनिक्न भेदकर सुदूर अनन्त की ओर अपनी प्रतिभा की অনীক दृष्टि प्रेर्ति को । उनकी इस इच्छा-शाक्त के वेग की प्रचलता के कारण दो हमें इतना आनन्द फ्राप्त होता है, और टदूटय वारम्वार सम्रम तथा श्रद्धा के साथ उनके पेरों तले पतित्त होना चादता है | यदि कोरी नीति के आधार पर ही समत्त कार्यों का निर्धारण লা हे




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