चन्द्रकान्ता सन्तति | Chandrakanta Santati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.68 MB
कुल पष्ठ :
266
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहिला
चुनार से इनके साथ श्राए थे ऐयारी के फन में खूब शेशियार किया |
इस बीच में पक लड़का श्रौर उसके बाद एक लटकी भी महाराज शिव-
दत्त के घर पैदा हुई । मौका पाकर झपने बहुत से श्रादमियों श्रौर
को साथ ले बदद शिवदत्तगढ़ के वाहर निकला श्रौर राजा बीरेन्द्रसि्ट से
चदला लेने की फिक्र मे कई महीने तक घूमता रहा । बस महाराज शिव-
दत्त का इतना ही मुख्तसर दाल लिख कर इम इस बयान को समास
करते हैं श्रौर फिर इन्द्रजीतसिंद के किस्से को छेडते हैं ।
इन्द्रजीतसिंद के गिरफ़ार होने के वाद उन वनावटी शेरों ने भी
श्रापनी हालत बदली श्रौर असली सूरत के ऐयार वन बैठे जिनमें यारश्रली
चाकरद्रली श्रीर खुदावख्श मुखिया थे । महाराज शिवद्त्त बहुत ही खुश
हुआ श्रीर समका कि झ्ब मेरा जमाना फिरा; ईश्वर ्वाहे तो फिर चुनार
की गद्दी पारऊँगा श्रीर श्पने दुश्मनों से पूरा बदला लूंगा ।
इन्द्रजीतर्मिद्द को कैद कर वह शिवदत्तगढ़ ले गया । सर्भो को ताज्जुव
हु कि कु अर इन्द्रजीतसिंद ने गिरफ्तार होते समय कुछ उत्पात न
मचाया; किसी पर गुस्ता न निकाला किसी पर हर्या न उठाया; यहा तक
कि श्रॉलों से उन्होंने रख अफसोस या क्रोध भी जाहिर न होने दिया ।
मे यदद की बात थी भा कि बहादुर वीरेन्ट्रसिदह का शेरदिल
लिड़का ऐसी दलत में चुप रद्द जाय श्र बिना हुलत किए बेडी पहिर
हुने; मगर नहीं इसका कोई सबब जरूर है जो श्रागे चल कर सादूम होगा 1
ही तीसरा बयान
४. चुनारगढ़ किले के एक कमरे में महाराज सुरेन्द्रसिं, वीरेन्द्र
एम, जीतसिंद, तेजसिंद, देवीसिंद, श्र शआनन्दसि् बैठे
धीरे धोरे कुछ वातें कर रहे हैं ।
जीत० 1 भैरो ने चडी दोशियारी का काम किया कि श्पने को इन्द्र-
हे रीतसिद की सूश्त चना शिवद्त्त के ऐसयारों के दाथ फँसाया |
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