चन्द्रकान्ता सन्तति | Chandrakanta Santati

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Chandrakanta Santati by देवकी नन्दन खत्री - Devaki Nandan Khatri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहिला चुनार से इनके साथ श्राए थे ऐयारी के फन में खूब शेशियार किया | इस बीच में पक लड़का श्रौर उसके बाद एक लटकी भी महाराज शिव- दत्त के घर पैदा हुई । मौका पाकर झपने बहुत से श्रादमियों श्रौर को साथ ले बदद शिवदत्तगढ़ के वाहर निकला श्रौर राजा बीरेन्द्रसि्ट से चदला लेने की फिक्र मे कई महीने तक घूमता रहा । बस महाराज शिव- दत्त का इतना ही मुख्तसर दाल लिख कर इम इस बयान को समास करते हैं श्रौर फिर इन्द्रजीतसिंद के किस्से को छेडते हैं । इन्द्रजीतसिंद के गिरफ़ार होने के वाद उन वनावटी शेरों ने भी श्रापनी हालत बदली श्रौर असली सूरत के ऐयार वन बैठे जिनमें यारश्रली चाकरद्रली श्रीर खुदावख्श मुखिया थे । महाराज शिवद्त्त बहुत ही खुश हुआ श्रीर समका कि झ्ब मेरा जमाना फिरा; ईश्वर ्वाहे तो फिर चुनार की गद्दी पारऊँगा श्रीर श्पने दुश्मनों से पूरा बदला लूंगा । इन्द्रजीतर्मिद्द को कैद कर वह शिवदत्तगढ़ ले गया । सर्भो को ताज्जुव हु कि कु अर इन्द्रजीतसिंद ने गिरफ्तार होते समय कुछ उत्पात न मचाया; किसी पर गुस्ता न निकाला किसी पर हर्या न उठाया; यहा तक कि श्रॉलों से उन्होंने रख अफसोस या क्रोध भी जाहिर न होने दिया । मे यदद की बात थी भा कि बहादुर वीरेन्ट्रसिदह का शेरदिल लिड़का ऐसी दलत में चुप रद्द जाय श्र बिना हुलत किए बेडी पहिर हुने; मगर नहीं इसका कोई सबब जरूर है जो श्रागे चल कर सादूम होगा 1 ही तीसरा बयान ४. चुनारगढ़ किले के एक कमरे में महाराज सुरेन्द्रसिं, वीरेन्द्र एम, जीतसिंद, तेजसिंद, देवीसिंद, श्र शआनन्दसि् बैठे धीरे धोरे कुछ वातें कर रहे हैं । जीत० 1 भैरो ने चडी दोशियारी का काम किया कि श्पने को इन्द्र- हे रीतसिद की सूश्त चना शिवद्त्त के ऐसयारों के दाथ फँसाया |




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