व्यवसाय का आदर्श | Vyavasaay Kaa Aadarsh

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Vyavasaay Kaa Aadarsh by भगवानदास केला - Bhagwandas Kela

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्यवसाय ओर स्वावलम्बन ७ प्रकार मानसिक गुणों के विकास के लिए भी हर आदमी को कोई-न. कोई व्यवसाव करना जरूरी और लाज़मी है । हर तरह के श्रम या मेहनत का आदर होना चाहिए-- यहाँ एक ब्रात को ध्यान में स्खना ज़रूरी है। कोई भी व्यवसाय हो उसमें कलु श्रम करना होता है--किसी काम में खासकर शारीरिक भ्रम होता है किसी में खासकर मानसिक, ओ्रोर किसी में दोनों ही प्रकार का श्रम मिला- जुला होता है | जब कि ब्यवसाय ब्यक्ति समाज श्रोर देश सब के लिए उपयोगी है तो यह विचार करना ठीक नहों है कि श्रमुक प्रकार का श्रम या काय ऊचे दर्ज का है, और अथुक प्रकार का श्रम या काय नी चे दर्ज का है | खेद है कि बहुधा लोगों को यह घारणा होती है कि मेज कर्सी पर काम करनेवाले लेखक, अध्यापक या নলঙ্ক श्रादि का पद ऊंचा है; इन्हें श्रादमी वाबू साहब, पंडित जी या मुन्शी जी श्रादि कह कर पुकारते हैं | इसके विपरीत खेती करनेवाले, सामान ढोने वाले या मेहनत मजदूरी करनेवाले नीचे समझे जाते हैं | हमारे यहाँ प्रायः किसान का श्रथ गंवार है, ओर “मज़दूर या “कली” शब्दों में अपमान का भाव रहता है। यही नहीं, भारतवष में कितने ही काम ऐसे नीचे दर्ज के माने जाते हैं कि उनके करनेवाले ही नहीं, उनकी संतान भी, जो चाहे उस काम को न भी करती हो, श्रस्पृश्य या अछ्ुत समझी जाती है। इस तरह का जाति-भेद मानना श्रम का अनादर करना है। असल में किसी श्रम को नीचा नहीं मानना चाहिए । हमे स्वावलम्बन का माव बढाना चाहिए । स्वावलम्बीश्रादमी किसी भी प्रकारका পল करनेवाला हो, कोई भी व्यवसाय करता हो, वह आदरणीय है ; हाँ, हरेक व्यवसाय में श्रादश श्र सिद्धान्त रहना चाहिए; इसका विचार आगे किया जायगा | ঠা




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