श्री समयसार | Shri Samaysar

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पं. परमेष्ठी दास - Pt. Parameshthi Das

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हिंमतलाल जेठालाल शाह - Himmatalal Jethalal Shah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री समयप्तार की विषयानुक्रमणिका (न १. जीवाजीवाधिकार विपद गाथा ছু (अयम दै८ गायाओंमें रंगभूमिस्यज्ञ बाँधा है, उसमें जीव नामझे पदार्थ का स्वरूप कहा दै ) मंगजाचरण प्रस्यप्रतिज्ञा १ ४ श्रद्‌ जोव-अजीयर्प च दरव्यासमक लोक है इसमे धमै, जथमे) आकार फाल ये धार द्रव्य तो स्थभावपरिणतिस्वरुप द्वी हैं. और जीव पुद्लद्रव्य के अनादिकालके संयोगसे विभ[वपरिणि भी है, क्योकि स्पशे) रस, गंध यर्ण शब्दरूप मूर्तिक पुदूगल को देखकर यह जीब रागढ्वेपमोहरूप परिणमता है और इसके निमित्तसे पुदूगल कर्मरूप होकर जीव के साथ बँधता है । इस तरह इन दोनेंके अनादिसे घधावर्ण दै ।जीव जब निम्मित्त पाफर रागादिकरूप नहीं परिणमता तथ नवीन कर्म भी नहीं औैंधते, पुराने कर्म कइ जाते हैं, इसलिये मोक्ष ती दै; पेते चौके स्वसमय-परसमयकी भवृत्ति द्वोती है। जब ज्ञीव सम्यग्दशन-क्ान-चारित्र- भावरूप अपने स्थमावरूप परिणमता दै तब समय होता द शीर जव मिस्याद्शन-हान-चारिश्ररूप परिणुसता है तब पुदूगलकमेसे ভা ভা परममयदै देना कयन लीवके पुदुगजकर्मे साथ बघ द्वोनेसि परसमयपना है सो सुन्दर नदीं द, फारण झि इममें ज्ञोय संसार में श्रमता अनेक तरद के दुःस पाता हैः इसलिये स्त्रमावमें शियर होफर सथमे जुदा होकर अकेला स्थिर होय तमी सुन्दर (ठीक) है जीयरे जुददापन और एकपनऊका पाना दुलेम है, क्योंकि यंधकी फथा तो सभी प्राणी फरने हैं, एकल्वकी कथा बिरले जानते दें जो कि दुर्लभ है; বল মহতী হযন इस कया फो दस सब अपने अमुमयसे घुद्धि फे अनुसार फटे हैं; उसफो अग्य जीद भो अपने अनुभव परीक्षा कर प्रण करना शुद्धनपते देखिये सो जोष अप्रमत प्रमस दोनो दशाओंसे जुदा एड शायकन আসমা है जी कि जामनेयाजा दे वो छोव दे उस गम्न्पौ




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