रश्मि रेखा | Rashmi Rekha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Rashmi Rekha by बालकृष्ण शर्मा - Balkrishn Sharma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about बालकृष्ण शर्मा - Balkrishn Sharma

Add Infomation AboutBalkrishn Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रिम रेखा शत सहक्ष मधु रस धाराए बरस जठ तहता क्षरक्ष कर हो शविति वतुभा-अलम्बुषा मुदमय वृत्यः कर उठे थरथर हस सूखे अग जग मरुथ5 में ढरफ बहो मरे रस नि! ऊध्य लक्ष्य भदन वास्तव म प्रधान उ पीडन दै । गे दैखिये- स्तोम मे निस्पीम कौ कैते पटने की श्रेष्टा कौ गह है-- मानव का अति क्षद्र घरोदा जग का प्राज्ण बच जाए । यों सीमा में नि सीमा का विस्तृत चहुआ तन जाए |! फोड्इम्‌ कसत्वम्‌ में उलका हुआ आणी कैसे सोचता है यह भी देलिय--- तब ग्राज्ुण यह क्‍या अनन्त है? या कि कहीं यह अत वन्त है? कव तक कहो सुछझ पायेंगे चिर रहस्य ये सारे ? अश्थिर कने शा हुम तारे । इस प्रकार के थिंतना को उकसाने वातरे अनेक स्थत्त उनम बहुत मिलेंगे । उनमें एक-आ ब्रज के भी गीत हैं जिंनम कामतता बहुत दे यद्यपि भाषा की दृष्टि से नितांत अदोष नहां रह पाय । एक स्थान पर मैंने सकेत किया है कि अभि प्रजन का सक्षिप्त प्रयास गोत नहों है | अग्रजी हिंदों ओर सरक्ृत त्ीना भात्राओं म सक्तिप्त अभि यजन यवस्था एक प्रथक मह व रखती है। छोटी-छोटो सूजात्मक सूक्तम बहुधा अपन में यश होती हैं और उक्ति वेवित्य अथया ज्वलत विधार खण्ड अथवा प्रसुखे तथ्य रूप श्रथगरा वास्तविक * ष्वषं का असुख भाग सामने रखने के कारण पाठका आर श्रोताओं के काठ में अपना स्थान कर छतों हैं। आशिक सत्य कै दशन हनि के कारण इनका वदा प्रापक्र प्रभाव पडता है। अमरजी म श (008. ) कहते हैं। ससकृत और हिंदी म तो इन सूतात्मक सूक्रियों के लिये विशष हछुंद। का प्रयोग दवोत। है । तोहा सोरठझा बरवा आर्या अलुष्दुप इ यादि चदं में बहुधा सूक्रिय। को स्वना को जाती है | इन छुट। को कवि सूक्ियों के अतिरिक्त मुकक भाव विचार और रूप का अरकं करने के गिये भौ प्रयोग करते हैं। कवि को सबसे बड़ी कज़ा यह है कि एक या अनेक चित्र अथवा ग्रापार दो पक्षिया ७




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now