उन्नीसवीं शताब्दी का अजमेर | Ajmer In Nineteenth Century

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Ajmer In Nineteenth Century by राजेन्द्र जोशी - Rajendra Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऐतिहासिक सन्दर्भ ५ पहरादें जुडवाई थी । चौह्ननो को पराजय के बाद अजमेर में धुबेदार रहने लगा झौर नगर की समद्धि को इतता धकवा लगा कि पदन्दहवी शती के मध्य तक ওলাগা मुईतुद्दीत चिश्ती वी मजार के पास जगलो पशु भर बाघ घूमते हुए नजर प्राते थे 1 ९* इस तरह उत्तरी भारत के इतिहास म भजमेर की यशोगाथा का अत हुआ भोर तत्पश्वात्‌ भजमेर राजस्थान के हृदय म॑ मुस्लिम चौकी की तरह बना रहा जिसका उदं एय राजपूत राजाभो पर नियन्त्रण रखना था । सदर ११६३ में मुहम्मद गौरी के हाथो पृथ्वीराज की पराजय के बाद झजमेर भसलमान गतिविधियो का एकं केन्य गया। मुहम्मद गौर ने पवय श्रजमिर के निकटवर्ती पडौसी क्षेत्रो के নিহঝ सैनिक श्रभियान वा नेतृत्व विया परन्तु श्रजभेर पर पूरी तरह मुसलमान शासन को स्थापित करने का भार कुतुबुद्दीय एंबक को सौंपा । पृथ्बीराज के छीटे भाई हरिराज ते जिसे फरिश्वा ने हैमराज झौर हसन निजामी ने जिसे हीराज 5हराया है, भ्रपने भतीजे को, जिसने मुसलमानों का भाधिपत्य स्वीकार कर रखा था गद्दी से उतार कर स्वयं भ्रजमेर का राजा बना | हरीराज के सेनापति छत्रराण ने दिललो पर आक्रमण किया, परन्तु बुतुबुद्दीन के हाथो पराजित होकर उसे घजमेर भाग भाना पढा । कुतुबुद्दीन ने उसका प्तजमेर तक पीछा किया तथा हरिराज को घुद्ध मे पराजित कर झजमेर धर भ्रधिकार कर लिया 1११ उसका उ्द एय अजमेर से लेकर धरिहलवाडा ९ तक का क्षेत्र जीतना या परन्तु मेरो ने राजपुतो के सहयोग 9 उषे भारी पराजय दी जिश्नमे उसे घायल होकर प्राण बचाने के लिए भाग कर प्रजमेर के किले मे शरण लेनी पडी । पीछा वरते हुए राजपूतों ने भ्रजमेर दुर्ग को पैर लिया। यह घेरा कई महोनो तक चला परन्तु गजनी से कुमुक पहुचने पर राज- पूर्तों को पीछे हठमा पड़ा | ३ बुतुबुह्दीव पी मुत्यु के बाद राजपुतों वे छुछ फाल फै लिए तारागढ़ पर पुत्र भ्रधिकार कर लिया था 1*४ परन्तु इत्तुतमीश ने शीघ्र हो उन्हें खदेड़ कर भजमेर पर भ्पना अधिकार कर लिया। तब से लेकर तैमूर कै प्राकपणण तक प्रजमेर दिल्‍ली सत्तनत के भ्रधीन बना रहा 1३४ प्रजभेर चौदहवौ सदी के भरन्त तक दिल्‍ली सल्वत्तत के कब्जे भें रद्दा । इन दो सदियों के इतिहास भे भ्रजमेर के बारे मे वहा के घुवेदारों के परिवर्वेर को चर्चा झो छोडकर प्रन्य किसी तरह का विशेष उल्लेख नही মিলা ই ।९९ বহুত के भाकमण भोर प्रक्दर द्वारा श्रजमेर पर विजय फे वीय के समय भे धजमेर ने कई सत्ता परिववन देवे । पते मालवा के सुसनमान सुल्तानो इसके दाद भुजरात के सुल्तान भौर भत मे राजपूतों वे मधिकार में यह रहा । इस समय में मगर वी समृद्धि का फाफी हास हुआ । सद्‌ १३६७ भौर सद्‌ १४०६ के मध्यवर्ती काय मे, अव दिल्ली सल्तनत को दिल्ली पर भी भपना भ्रधिकार बनाये रखना कठिन सवका था, सिसोदिया राजपूतो से भारवाड के राव रणमसरे७ के नेतृत्व मे




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