लोक - गंगा के तट से | Lok Ganga Ke Tat Se

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Lok Ganga Ke Tat Se by धीरेन्द्र मजूमदार - Dheerendra Majoomdar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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16 छोक-गंगा के तट से लगे हुए थे | आमतौर से वे मानते ये कि अंग्रेजों का गज इटेगा, तो गांधीजी का राज होगा । वे इसी तरह से बात भी करते थे | वे लोकतन्न की कभी कत्पना भी नहीं कर सकते थे और न हमने कभी उन्हें लोकतन्त्र के विचार की प्रेरणा दी थी। आजादी द्वासिल होने के तुरंत बाद भी जब द्वम जनता में घूमते ये और चर्चा के दरम्यान पूछते थे, “बताओ, आज देश मे किसका राज है !” तो भरी सभा में एक खर से आवाज उठती थी, “जवाहरलाल नेहरू का राज है ।” जब हम पूछते थे, “नेहरूजी के मरने पर किसका राज होगा ?” तो काफी आवाज सुनायी देती थी, “उनके बेटे का ॥* और इत्तिफाक ऐसा हुआ कि हो भी वैसा ही गया । यह तो में देहाती जनता के मनास्थिति की बात कर रहा हूँ। लेकिन वस्तुस्थिति यह थी कि शहराती जनता का, जिनकी हम सचेतन जनता कहते हैं, मानस भी उसी प्रकार का था। एक दिलचस्प कहामी याद आ रही है.। मुजफ्फरपुर जैसे बड़े शहर में चुनाव की सभा चल रही थी | उस सभा में झृपालानीजी ने वही सवाल पूछा, जो आये दिन देहातों में हम लोग पृषते र्दे द । तो उनको भी वदी जवाव मिथ, जो दम लोगों को अचेतन ग्रामीण जनता से मिलता था | आज आजादी के पचौस साल के वाद भी मेरी यात्ञा मैं जब मे लोकतन्त्र की बात समझाने का प्रयास करता हूँ, तो काफी समझदार छोग भी कहते हैं कि गाँव की समस्या की जिम्मेदारी हमारी नहीं है, बह उसकी है, जो राज करता है| पचीस साल मे इतना अन्तर अक्य हो गया है कि आज पूछने पर जनता यह कहने लगी है कि देश में जनता का राज है। लेकिन यह कहना लोकतन्त्र के बिचार समझकर उसके लिए एट्सास का परिणाम नहीं है, बढ्कि विभिन्‍न चुनावों के अवसर पर भिन्‍न-मिन्‍न पार्यी के नेता और कार्यकर्ता के उद्घोष की यॉद- गार है | एक शब्द चल गया है ओर जनता उसे दोय रषी । अभर यह शब्द लोकतन्त्र के शिक्षण का परिणाम द्ोता, वो जितमी आसानी से




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