विधि - विधान | Vidhi - Vidhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विधि-विधान । ५३ इसी समय आंगन पार होकर मीशकी माता; रसोईघरके दरवाजे पर जा पहुँची । उम्र तो उसकी ज्यादासे ज्यादा पश्चोस वर्षकी होगी, पर देखनेमें और भी कम उम्रकी माठूम होती थी | सनवकी मावा उससे * अधिकसे अधिक दो वष बड़ी थी, पर उसके सामने मीराकी माँ बिछकुछ किशोरों मालूम होती थी | विषाद-मद्िन ओर गूढ़ चिन्ता- च्छन्न मुखस विधवा देवरानीने सधवा जेटानीकी ओर देखा । मलिन बदना बाढिकाकों जेठानीकी गोदमें देख कर क्षणमात्रमै उसका ऋंचित-भ्र, चिल्ता-स्छान मुछा विरक्तिके उच्छूबासले आरक्त हो उठा। जेठानीकौ आर देखा कर मीराकी माताने ऊख तीघ्र स्वरसे कहा,- “वहन, आज दूधको इधर-उधर फिज्जूछ न खाचे कर देना । पिताजीको दोनां वक्त दूध पीनेका अभ्यास नहीं है। कुछ खीर-बीर बना देनी चाहिये । कछ तो बनाई नहीं गयी थी, आज तो बनेगी न ? सनत्‌की माताने छर অল होकर उत्तर दिया,--“यह तो ठीक. है, खीर अशूर बनानी चाहिये । दुधी खोँच हो गयी तो भौर सब काम छोड़ कर आज जरूर बनाऊंगी |” /फिज्लुछ खच न.किया गया, तो कोई काम न छोड़ना पड़ेगा बहन |! “छोटीबहू, तुम बार-बार फिजुछ खार्च क्या कहती हो ? करुणा अब जा बारिश कम हो गयी है, तू घर जा, में अभी हरीशको' भेजती हूं ।” ४द्वीदी, कछ रायता-आचार न होनेसे पिताजी भच्छी तरह भोजन नहीं कर सके, आज येह कमी न रहे |”




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