विधि - विधान | Vidhi - Vidhan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
288
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विधि-विधान । ५३
इसी समय आंगन पार होकर मीशकी माता; रसोईघरके दरवाजे
पर जा पहुँची । उम्र तो उसकी ज्यादासे ज्यादा पश्चोस वर्षकी होगी, पर
देखनेमें और भी कम उम्रकी माठूम होती थी | सनवकी मावा उससे
* अधिकसे अधिक दो वष बड़ी थी, पर उसके सामने मीराकी माँ
बिछकुछ किशोरों मालूम होती थी | विषाद-मद्िन ओर गूढ़ चिन्ता-
च्छन्न मुखस विधवा देवरानीने सधवा जेटानीकी ओर देखा । मलिन
बदना बाढिकाकों जेठानीकी गोदमें देख कर क्षणमात्रमै उसका
ऋंचित-भ्र, चिल्ता-स्छान मुछा विरक्तिके उच्छूबासले आरक्त हो उठा।
जेठानीकौ आर देखा कर मीराकी माताने ऊख तीघ्र स्वरसे कहा,-
“वहन, आज दूधको इधर-उधर फिज्जूछ न खाचे कर देना । पिताजीको
दोनां वक्त दूध पीनेका अभ्यास नहीं है। कुछ खीर-बीर बना देनी
चाहिये । कछ तो बनाई नहीं गयी थी, आज तो बनेगी न ?
सनत्की माताने छर অল होकर उत्तर दिया,--“यह तो ठीक.
है, खीर अशूर बनानी चाहिये । दुधी खोँच हो गयी तो भौर सब
काम छोड़ कर आज जरूर बनाऊंगी |”
/फिज्लुछ खच न.किया गया, तो कोई काम न छोड़ना पड़ेगा
बहन |!
“छोटीबहू, तुम बार-बार फिजुछ खार्च क्या कहती हो ? करुणा
अब जा बारिश कम हो गयी है, तू घर जा, में अभी हरीशको'
भेजती हूं ।”
४द्वीदी, कछ रायता-आचार न होनेसे पिताजी भच्छी तरह भोजन
नहीं कर सके, आज येह कमी न रहे |”
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