जिनाज्ञा विधि प्रकाश | Jinagya Vidhi Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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, *, | ঘরঘল সন্কাহা 11 “( १३) उन को सूत्र में सुगमता मालम॑ “हुई उस जगह सुगम: ऐसा, कहकर छोड दिया'अर्थात्‌-उस्त की टीका न बनाई। सो अब वे शब्द /वत्तैसान काल भे व्रहुत कठिन होगये ।.रोर जे “श्माचार्यो ने , करण > शादि मन्दवुदधियो के वासते रचे ये सो रूर 'करके उन .क रचेहुए प्रकरण मिलते ही बहुत कम हैं । जो कोई मकरण मिलता हैतो उस के सममाने: वाले गुरु नहीं मिलते इसलिये-इस ग्रथ, का ,चनाना सम्रयोजन है॥# शका-अजी-भाषा के भी प्रथु तो बहुत मिलते ह+ क्या उन, से उन लोगों को बोध न होगा क्योंकि अक्सर करके भाषा क्रे ‡ग्रय, छपे के होने से भाचीन और नवीन्‌ |गुजराती|व हिन्दी; भाषा में बहुत मिलते ई क्याउन से बोध नहीं होग| तो तुम्होरे अध से ही बोध होगा,९॥ “0 / समाधान--जो तुमने, कहा कि भाचीननवीन |भापा:के: ग्रथ ,भी बहुत मिलते ह सो ठीक परन्तु जो प्राचीन बुद्धिमान थे , उन्हीं नेम सर करके जो'ग्रथ,भाषा: में बनाये हैं उन्त,में एक दो. अनुयोग की विशे- पता, ¡करके ; वर्णन “किया. है- जिस म एक = अनुयोग; को {मुर करके लिखा है. और दूसरे को,गौण करके रकिवितः छिना है;। शत्य बाते ।जो जताई है सो भी दोहा, दाल, ,,स्तव॒न-शआदि:कहके प्रकरण रे है.सो उन.मे।मार्ग, तो ,दिखाया हैं परन्तु सरल भाषा, करकं, न दों छन्द पादिक का अर्थ अथवा झपना अमिप्राय-खुल[सा न. कहां। श्रो जो नवीन गर्थों के बनानेवाले, हैं उन्हों ने अपने २ पक्षपात्‌ से अब मे किसी, ने निश्चदही -को पुष्ट;करक़े,,व्यूवहार॒- को उठाया है, | हर किसीं ने उत्सर्ग, मार्गं कोस्मगीकाराकरये ग्रथ, रचा है, ।किसी ने ह्प- याद ,मर्म/को ही पुष्ट-करके,ग्रथ रचा है इसलिये -उन अंयो की; भिन्न, २ म्रकिया देखने से: जिशसु-को-उल्तदे,सन्देह-सैद्ा होते/हैं। तो,




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