कबीर के धार्मिक विश्वास | Kabeer Ke Dharmic Vishwas
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
149
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ धर्मपाल मैनी - Dr. Dhrampal Maini
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६ )
कह कर “भगवद्भूकत' नामक एक नई जाति का निर्माण
कर लिया था, जिप्के कबीर उज्ज्वलतम रत्न थे। लेकिन
हिन्दू और मुसलमान, कोरी तथा जुलाहा जातियो के चक्कर
में पडने बाले आधुनिक युग के बौद्धिको ने उन्हे तक वितक
के चक्कर में फमा कर एक विशेष जाति के बधन मे बाधने
का प्रयत्न किया है ।
तू ब्राह्मन मेकसीका जुलाहा बूकहु मोर गिप्नाना।'
इसी प्रकार कई बार उन्होने अपने जुलाहा कहने
में ही गौरव अनुभव किया , और कही कही उन्होने अपने
को 'कोरी' भी कहा है। मूलत दोनो ही वयन-जीवी हैं। भ्राज
के बौद्धिक अनुसंधित्सुओ ने यह भेद करने में देर नही
लगाई, कि ये जुलाहे मुसलमान थे और कोरी हिन्दू | फिर
भी कबीर दोनो में से किस वश मे हुए यह गडा बना ही
रहा । स्वामी रामानन्द के आशीर्वाद से विधवा ब्राह्मणी
कीकोखसे जन्म लेना तथा मुस्लिम नीर जुलाहा दम्पति
द्वारा उसका पोषित होना-दोनो ही प्रसिद्ध किवदन्तिया हैं ।
श्रोचायं हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा है-- कबीरदास जिस
जुलाहा जाति में पालित हृए थे वह एकाध पुरत पहरे की
योगी जैसी किसी आश्रम भ्रष्ट जाति से मुसलान हुई थी या
ग्रभो होने की राहु मे थी ।? यह कह कर उन्होने योगी या
जुगी जाति को कोरी या जुलाहा से अधिक महत्त्व प्रदान
किया है । मूलतः: जो बात उन्होने कही है वह यह है कि
हिंदू सरकार नाथ पन्थियों के माध्यम से इन योगियो में
कबीर प्रस्तावना पृष्ठ १.१ .
User Reviews
No Reviews | Add Yours...