पांच कहानियाँ | Paanch Kahaniyan

Paanch Kahaniyan by सुमित्रानंदन पंत - Sumitranandan Pant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाँच कहानियाँ झान्त एवं पराजित हो अन्त में पीताम्बर ने एक तम्बोली की दूकान में पान लगाने की नौकरी कर ली पर वहाँ भी वह अधिक समय तक न ठहर सका । उसकी कुटेवें उसका दुभोग्य बन गई. थीं । और एक रोज़ दूकान पर पान खाने को आई हुई एक वेश्या के रूप-सम्मोहनन के तीर से बुरी तरह घायल हो उसने शाम के वक्त चुपचाप गल्ले की सन्दूक़ची से पाँच रुपए का नोट चुराकर अपनी विपत्ति-निशा की कालिमा को एक रात के कलंक से. और भी कलुषित कर डाला । उसका स्वास्थ्य अभी खराब नहीं हुआ था । उसके अविविवाहित जीवन सबल इन्द्रियों की स्वस्थ प्रेरेशाओं का समाज अथवा ससार क्या मूल्य आँके सकता था क्या सदुपयाग कर सकता था ? फूल की मिलनेच्छा सुगन्ध कही जाती है मनुष्य की प्रणयेच्छा दुग्ध उसे निमंत्र समीर वाहित करता है इसे कलुषित लोकापवाद । नर-पुष्प के वीये का गीत गाता हुआ भौंरा सत्य करता हुआ मलयानिल ख््री-पुष्प के गभ में पहुँचा आता है मनुष्य का वीये वेवाहिक की अच्छी कोठरियों पाशविक वेश्याचार की गन्दी नालियों में सेहत प्रकार के गहिंत नीरस कृत्रिम मैथुनों द्वारा छिपे-छिपे प्रवाहित होता है यह इसलिए कि हम सभ्य हैं मनुष्य के मूल्य को जीवन को पवित्रता को समक सकते हैं । असंख्य जीवों से परि- पूणण यह सृष्टि एक ही अमर दिव्य शक्ति की अभिव्यक्ति है श्रकृति के सभी काये पुनीत हैं मनष्य-मात्र की एक ही आत्मा है--




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