कल्याण कारक | Kalyana Karak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32 MB
कुल पष्ठ :
913
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(४)
স্পস্ট 2-०५ পাপা ~~~ ~ ~
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अव्यबोंम बने हुए पचनश्वसनादि मेडखोमे त्रिधातु रहत है } जवयवोमे, उनके घटकोमे;
घटकोके परमाणुबोमे त्रिातुबोर्क ब्याप्ति रहती है। इसलिए उनको व्यापी कहा है ।
व्यापी रहते हुए मी उनके विशिष्ट स्थान व कार्य है ।
सचेतन, सद्रिय, अतीदिय, अतिमुदेम व वहत पररमायुवोके समूह से इस जीवेत
देह का निर्माण होता ह । परमाणु अतिसुषम हरर इ शरीर मे अब्जावधिप्रमाण रे
रहते है | एक गणितशाखकारने इनकी संख्या को तीस अब्जप्रमाण मे दिया हैं |
शरीर' के सर्व व्यापार इन परमाणुओके कारण से होते ६ । इन्हीं परमाणुओसे शरीर के
अनेक अवयब भा बनते है | यकृत. प्लीहा, उन्दुक, ग्रहणी, हृदय, कुष्पुम. सहस्रार
नाडीचक्र आई का अंतिम भाग इन परमाणुओंक स्वरूप में है । अनेक परमाणुओसे
अवयबोका घटक बनता है | घटकों अवयव, अवथवाम मेड वनते हे । वातमंडदट,
खधसङ्क. पचन. रधिराभिस्षरण. उत्मग ये दारीर कं मुख्य मडट दहै । परमाणुओमे रहने
वादे त्रिघातु अतिसृक्षम और अवयवांतर्गत, वातमंडलांतर्गत त्रिबातु सृक्ष्म रहते है तो भा
उस के स्थृल्व्यापार कै त्रिधातु स्थूलरूप के रहते दै । उदाहरण के लिए पचन
व्यापार आमाशय. पक्षाशय. ग्रहणी, यकृनादि अब्यबोम होता हैं | आमाशय, पकाशय
बंगरह भे गहनवाला पाचकपित्त स्थूल््थरूप का रहता हैं | वह अपनेको प्रयक्ष देखन
में आसकता है | वह बिखर, सर. द्रव, आम्ल आदि गुणोंसे देखने मे आता है | इस
फ्ति का अन्न के साथ संयोग होता है। और अन्न के साथ उसकी संयोग-मूच्छेना
होकर पचन होता है | पचन के बाद सार-नफेट्रप्रथकब होता है | सारभाग का पक्षाराय
में शाषण होता ई | मार-किद्रभिमजन, सारसंशाषण यह कार्य पित्त के कारण से होते
हैं। इतर रक्तादि ग्रातमूल घातओंके समान पित्त कफारिकोका भी पोप्रण होना आवश्यक
हे | वह पोषण भो पचनब्यापार में होता है. | पित्त का उदौसण होकर क्त्तिस्रांव
होता गहता है । खवर हन कं पिके पित्तादिं घातु उन उन घटकोम सृक्ष्मरूप से रहते
है । सुक्ष्मब्यापार में वे दीख नहीं सकते । वाहर उनका खाब होनेके बाद वे देखने मे
जत है । अनः पित्त पित्तका स्थूलरूप, पित्तेत्पादक घटकश्थितपित्त सृक्मरूप और
परमाण्बंतर्गतापेत्त अतिसृक्ष्मखरूप का रहता है, यह धिद्ध हुआ |
भुक्तमात्र अन्न के पड्रसोंक पाक से पाचकापच का उदीरण होता हे | आमाशयं
मं पाचकपित्त ष किदककफ का उदीरण हकर वह धार धीर् अन्न मे मिरु जात है।
ब अन्न का विपाक होता है | अश्नपचन का क्रम करीब करीब चार घंटे से छह घंटे
१ हारीराबयवस्तु खल्द्र परमाणुभेदेमाषरिसंश्येया भवति; अतिवहुष्वाव्
विश्श्म'बादतीदियत्वास्च || चरकशरीर ७
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