भूदान - गंगा प्रथम खंड | Bhoodan-ganga Khand - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमि-दान-यज्ञ ‡ ११४ पहले जब्-जब देश में अश्यांति पैदा द्वोती थी, तब-तब हमारे यहाँ के बुद्धिमान्‌ खग यद श कर देते ये 1 मैंने इस मुल्क में श्रवेश किया, तो सुझा कि मुझे भी यज्ञ शुरू करना चाहिए | यहाँ झगड़े हुए, मारपोड हुई, खून हुए, उसकी थांति यह्व के सिवा कैसे हो सकती है ! आपके इस गाँव में मी मार्काट हुई, हत्या हुई, जिसकी निशानियाँ में देखकर आया हूँ । इस तरह कई गाँवों में हुआ । तो, इन सबकी दरंति के लिए यश होना चाहिए, | कौन-सा यज्ञ करें, यही मैं सोचता था | मुझे एकदम सूझता न था। क्या पश्च-बलि-यज्ञ शुरू करूँ १ पर पश्च-त्रल्षि से मनुष्य फो क्या छाम हो सकता है! यदि छाम द्ो सकता है, तो काम, कोघ, छोम, मोहरूप पश्ओं के नाश्व से। ये दी पद्च हैं, मिनका राज्य हमारे मन पर चलता है। तो, इनका बलिदान करें, ऐसा यज्ञ हो सकता है। मैंने सोचा, इस ज्माने में हमारे दिल में कोन-ठा पश्च ज्यादा काम कर रहा है! मेरे ध्यान में आया, सबसे बढ़कर पद्यु--जो हमें तकलीफ देता है-- बह है, द्रव्यलोम | आजकल जंगडों में बहुत शेर नहीं रहते, इसलिए, उनकी हमें बहुत तकलीफ महीं होती । लेकिन यह छोमरूपी पक बहुत तकलीफ दे रहा है, इर जगह तकलीफ दे रहा है। इसका बलिदान फरने से झ्ांति हो सकती है। फिर मैंने आपके पास मूमिदान माँगना झुरू फर दिया। जहाँ गया,-वबहाँ छोगों को यही समझाया कि इस स्थेमरूपी पश्चु का बलिदान होना चाहिए। छोगों ने छोभ तो पूरा छोड़ा नहीं, फिर भी थोड़ा-योड़ा भूमिदात दे दिया । यज्ञ का उद्देश्य : अन्तःबुद्धि इस भूमिदान-यञ्ष में हरएक को थोड़ा-थोड़ा हिस्सा छेना चाहिए! जब कभी पोई सार्वजनिक यर घुरू किया जाता है, तो उसमें हरएक को भाग लेना पड़ता है। किसीने कोई सार्वजनिक महायक्ष झुरू किया, तो हरएक घर से २-३ छठाक दूध मिलना घाहिए। कोई राजा या घनिक ज्यादा दूध दे दे, ऐसा नहीं चलता | इस भूमि-दान-बर में भी हरएक का हिस्सा होना चादिए | कारण




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