जैन शिलालेख संग्रह भाग 4 | Jain Shilalekha Sangrah Bhag-4

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jain Shilalekha Sangrah Bhag-4 by विद्याधर जोह्रापुरकर - Vidhyadhar Johrapurkar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विद्याधर जोह्रापुरकर - Vidhyadhar Johrapurkar

Add Infomation AboutVidhyadhar Johrapurkar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
५ जनशिलालेख-संग्रह इस गणके बाहुबली, थुभवन्द्र, मौनिदेव एवं मावनन्दि टन चार आचार्योन का वर्णन है - इनमे परम्पर सम्बन्ध बनलाया नहीं है। दूसरे তম १३वीं सदोमे इरा गणके एक मन्दिरका उल्लेख है तथा तीसरे किसमें इसी समयकी एक जिनमृतिका उल्लेख हैं । इसी संघके कारेयगणका उत्टेय १२्वी सदीके पूर्वाधयेः एकः टाव (क्र० २०९) में हैं। मुल्लभट्वारक तथा जिनदेवमूरि ये इस गणके आचार्य ये पांच टेखोमे यापनीय संधका उल्लेख किसी गण या गच्छके बिना ही प्राप्त होता ह ( ऋ° १४३,२९८-२००,२८४ ) । इनमें पहला खेप सन्‌ १०६० का है तथा इससे जयकोति - नागचन्द्र - कनकणशवित इस गुरुपरम्पराका पता चलता हैं। अगले दो छेस १२वीं सदीके है तथा इनमें मुनिचन्द्र एवं उनके शिष्य पात्यकीतिके समाधिमरणका उल्लेख हैं । अन्तिम लेखमे १३वी सदीमे त्रेकीति आचार्यका उल्लेख हैं । इस तरह प्रस्तुत संग्रहस यापनीय संघका अस्तित्व छठी सदीसे तेरहवीं सदी तक प्रमाणित होता है । (जा) मृल्संब--प्रस्तुत संग्रहमे मूलसंघके अन्तर्गत सेनगण, देशी गण, सुरस्थगण, बलगारगण ( बलात्कार गण } क्राणूरगण तथा निगमा- भ 4. पहले संग्रटमं इर नणक्रा उल्लेग सन्‌ ६८० म ( क्र० १६० ) | २. पहले संग्रहमें इस गणके दी लेख सन्‌ ८०५ तथां दसवीं सदी- पूर्वाधक्र टं ( ऋ० १३०,१८२ ) । ३. पहले सम्रहसं यायनीय संघके तीन जौर गणोंका उल्लेख है - कनकापकससभूत वृक्षमठ गण, आरमरमरऊलगण तथा ল্ঞাহললল गण- ( तीसरा साग-प्रस्तावना ए० २७-२९ ) आ रै ८२५




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now