श्रीकान्त | Shrikant

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Shrikant by शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय - Sharatchandra Chattopadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीकाँत ९ ডঃ पश्चिम के शहर में जाते ही समझ गया कि बंगाल का मल्ञेरिया मुक मजबूती से पकड़ चुका है | बेहोशी में ही में पटना स्टेशन से राजलक्ष्मी के घर तक लाया गया। इसके बाद एके महीने तक मे ज्वर, डाक्टर और राजलक्ष्मी घेरे रहे । जब ज्वर छूटा, तब डाक्टर साहब ने स्पष्ट रूप से ग्रहस्वामिनी को कट्द दिया कि यह शहर पश्चिम में है, स्वास्थ्यकर होने की ख्याति भी इसे प्राप्त है, फिर भी उनकी राय है कि रोगी को शीघ्र ही स्थानांतरित कर देना आवश्यक दे। एक बार फिर बाँघना-छाँदना शुरू हो गया | इस बार यँघाई जरा जम कर हो रही थी। रतन को अकेला पा कर मैंने पूछा--इस बार कहाँ जाना होगा रतन ! मेंने देखा कि इस नव-अमभिनव के वह एकदम विरुद्ध था। खुले दरवाजे की ओर देखता दुआ फुसफुसा कर जो कुछ वह बोला उससे मेरा दिल भी बैठ गया । रतन ने कहा-वीरभूम जिला में एक छोटा गाँव है गंगामाटी । जब यह गाँव खरीदा गया था तब एकदफे मैं मुखतार किसनलाल के साथ वहाँ गया था। मा वहाँ कभी नहीं जातीं-- एक बार जाते ही छोट कर भाग आने का रास्ता भी नहीं मिलेगा | गाँव में भद्र परिवार है द्वी नहीं, समझ लीजिए । गाँव केवल छोटी जातियों से भरा है । उनसे न तो श्राप छुआ सऊते हैं, और न उनसे कोई काम द्टी लिया जा सकता है । राजलक्ष्मी क्यों इन छोटी जातियों के साथ जा कर रहना चाहती थी, इसका कारण मै नहीं समक सका । मेंने रतन से पूछा--गंगामाटी कहाँ हे ! रतन ने बताया--साईथिया या ऐसे ही एक स्टेशन से दस-बारदह शेष बैज्ञगाड़ी पर जाना पड़ता है | पथ तितना दुर्गम है उतना ही भयानक भो है । चारों ओर मैदान ही मैदान है | उसमें न तो कोई फसल होती है ओर न कहीं एक बूँद पानी मिलता है। कंकड़ीली मिट्टी है--कह्दीं लाल, कहीं काली | इतना कह कर थोड़ी देर ठह्दर गया। फिर मुके लक्ष्य करके कहने छगा- बाबू, आदमी वहाँ किस सुख के लिए रहते हैं, यह में नहीं समक सका । ओ- जो ड




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