गल्प संसार माला | Galp sansar Mala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ € ॐ और नैव्यक्तिक ढंग से प्रकट करने की आवश्यकता होती है, तब प्रचलित संस्कार्यो पर अवश्य ही आधात होता है । इससे विचलित होना अनुचित हे । (३) हमारे इस युग की कहानियों में प्रायः লিযী श्रौर पुरुषों के प्रेम श्रादिसे सम्बन्ध रखनेवाली बते হী अधिक मात्रा में दिखाई देती दै । यहाँ तक की श्रस्वा- भाविक मनस्तच्च के प्रति भी इस युग के लेखकों की अनास्था नहीं है। इसी लिए जो बातें किसी समय सोचना भी पाप समभा जाता था, इस समय वे सब बातें निर्भय होकर लिखी जाती हैं । पिता-माता का सम्पर्क, भाई-बहन का सम्पक, धनिक ओर श्रमिक का सम्पके, राजा और प्रजा का सम्पक आदि बातें ऐसी हैं, जिन पर इस युग के लेखकों की बहुत तेज निगाह है। ओर कभी तो आधुनिंक काम-शाज्नर, कभी समाज-विज्ञान और कभी राष्ट्र-विज्ञान की दृष्टि से इन चिर-अभ्यस्त सम्पर्कों की आज-कल के साहित्य में जाँच कर ली जाती है । यह बात नहीं है कि इसमें व्यभिचार या अनाचार न होता हो । लेकिन एक नवीन शक्ति का भी इसमें पता चला है। रोलजानन्द मुखोपाध्याय, प्रेमेन्द्र मित्र, विभूतिभूषण वन्द्योपाध्याय, प्रबोधकुमार सान्याल, जगदीश गुप्त इन पाँच गत्प-लेखकों की विभिन्न कहानियों से ही इस नव- जाग्रत युग की वाणी सुनाई देगी । इनमें से प्रथभ और द्वितीय सचमुच ही बहुत बड़े साहित्य-स्ष्टा हैं । ओर बाकी लोग थोड़े-बहुत पुरातन-पन्थी हैं । इस दृष्टि से यद्यपि इन लोगों की भाषा और विषय-विन्यास में अभी तक रवीन्द्र का प्रभाव बहुत हो स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, लेकिन फिर भी उसके साथ ही साथ उनका निजत्व भी प्रायः सभी जगह दिखाई देता है । इस युग में गल्प-लेखकों में जिस प्रकार एक अप्रत्याशित उत्कषं दिखाई देता है, उसी प्रकार गलपों के पाठकों में भी, उसी के अनुरूप, रुचि-विकास का परिचय मिलता है । जो लोग कहते हैं कि आधुनिक कर्म-न्यस्तता के सामने दीघ नाव्या- भिनय देखने का अवसर नहीं है ओर इसी लिए सिनेमा का इतना अधिक प्रचार है, लम्बे-चौड़े उपन्यासों के पढ़ने का अवसर नहीं है ओर इसी लिए छोटी कहानियों का इतना अधिक आदर है, उनके सम्बन्ध में यह नहीं कहा जा सकता कि वे जो कुछ कहते हैं, वह बिलकुल ग़लत ही है। बादशाही पेचवान के बदले सिगरेट का




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