संस्कृत -दूसरी पुस्तक | Sanskrit Ditiya Pustak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाठ | हि ह द्षिय ः पुष्ठ बुधू धातु के कमंवाच्य में लुटू छू छइ लिटू और लुडू में रुप ० ० प्रत्ययान्त घातु अर्थात्‌ खिजन्त सन्नन्त यडन्त यड्‌ लुगन्त धाहु तथा शिच क्यड् क्यचू क्यशु यक्‌ किपू प्रत्ययों से नामघातु बनाना गा दर २७८--९८प४ परस्मेपद और भत्मनेपद अर्थात्‌ उपसर्गों झ्रादिकारणों से भुज़ गमू जि तपू रमू दा स्था यम प्रच्छू कु शृ हे और ज्ञा घाठुओं का पद बदलना का र्‌द४--९८७ उपसर्गों का अर्थ अर्थात्‌ झति अधि भधः प्र नि अनु उप अप परि वि अब उद्‌ झा निसू परा दुः छु प्रति सम भादि उपसर्गो का अर्थ न न २८७-ए९६० प्रसिद्ध झव्यय श्र उनका प्रयोग अर्थात्‌ अथ इति अपि चित्त चन्‌ स्विद हि तु वरम्‌ नघु उत इव कलित्‌ क किल खलु नाम दिया अहो यथा तथा यावत्‌ भादि श्रव्ययों का झथ और उनका प्रयोग भी २६०--९६७ शब्द भर . भविष्यपुराण से तथा युधिष्टिराजगरसम्वाद महाभारत से तथा दिवोदास + दिव्यादेवीइत्ता्त पद्मपुराणसे तथा भाषाशादिं ९६८--३०३




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