श्रीप्रवचनसारटीका भाग 2 | Shri Pravachanasaar Teeka Volume-2
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
420
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ब्रह्मचारी सीतल प्रसाद - Brahmachari Sital Prasad
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१८
३६
9०
1)
8२
४३
88
४५९
४६
४७
4४
६५
शक
17
৪
७९
<८
९.9
९.४
शुद्धा शुद्धियत्र ।
सद्द
होने
लायग्ग
उनको
अवस्थामई
जटल
यहां अरहंत....
धरीन्य
प्रतभिज्ञाग्र
होती है-
क्रण
एसी
पयोव
तद् भाव
अतदमाच
सो द्वव्यकी ...,
इन द्रव्य
स्येत स्य
सदसदभाव
शुद्धोपयीग
शुद्ध
होते हुए
लोयग्ग
उनक्री
अवत्था নই
भट
(यहां भरहंत पनेसे
मतलब है)
व्यय प्रौन्य
प्रयभिन्नाय
होता है-
कारण
रेषा
प्याय
तदभाव
अतदभाष
पयौयकी सत्ता है सो,
द्रन्यकी सत्ता
द्रव्य
स्येतरस्य
50151
झुद्धोपयोग
User Reviews
No Reviews | Add Yours...