श्रीप्रवचनसारटीका भाग 2 | Shri Pravachanasaar Teeka Volume-2

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Book Image : श्रीप्रवचनसारटीका भाग 2 - Shri Pravachanasaar Teeka Volume-2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ ३६ 9० 1) 8२ ४३ 88 ४५९ ४६ ४७ 4४ ६५ शक 17 ৪ ७९ <८ ९.9 ९.४ शुद्धा शुद्धियत्र । सद्द होने लायग्ग उनको अवस्थामई जटल यहां अरहंत.... धरीन्य प्रतभिज्ञाग्र होती है- क्रण एसी पयोव तद्‌ भाव अतदमाच सो द्वव्यकी ..., इन द्रव्य स्येत स्य सदसदभाव शुद्धोपयीग शुद्ध होते हुए लोयग्ग उनक्री अवत्था নই भट (यहां भरहंत पनेसे मतलब है) व्यय प्रौन्य प्रयभिन्नाय होता है- कारण रेषा प्याय तदभाव अतदभाष पयौयकी सत्ता है सो, द्रन्यकी सत्ता द्रव्य स्येतरस्य 50151 झुद्धोपयोग




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