न्यायप्रदीप | Nyayapradeep
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम अध्याय । ७
इसी तरद गायका उक्षण सींग, मनुष्यका रक्षण पेचेन्द्रियलल आदिः
भी अतिन्यापि छक्षणामासके उदाहरण सम्नना चाहिय ।
अव्याप्त रक्षणामास तो रक्षयके भीतर ठी रहता दै भर अति-
व्याप्त लक्षणाभास भीतर और वाहर-दोनों जगह-रहता है |
लक्षणरूपमें कहेगये धमेका, लक्ष्यमें बिलकुल न रहना
। असम्भव दोप है । जैसे गपेका रक्षण सीग । सीग किती
मी गेम नहीं होता, इसलिये यहां असम्भव दोष है और यह
दोषवाला क्षण, भसम्भनि छक्षणाभास कहता है । हसीतरह
जीवका ठक्षण अचेतनत् और पुद्ठल (प्रथ्वी आदि) का रक्षण
चेतनत्व आदि भी असम्भवि छक्षणामास दै ।
, कुछ उक्षणामास ऐसे भी होते हैं, जिनमें भव्याप्ति और अति-
व्याप्ति-दोनों-ही दोष पाये जाते हैं | जैसे-विद्ान उसे कहते हैं
जो अंग्रेजी अथवा संस्कृत जानता हो। परन्तु बहुतसे विद्वान ऐसे हैं जो
अंग्रेजी और संस्कृत दोनों नहीं जानते फिर भी वे विद्वान् हैं; इसलिये
अब्याप्ति दोप है। तथा बहुतसे मूख भी संगति आदिसे या मातृभाषा
होनेसे अंग्रेजी या संस्कृत वोलने छ्गते है लेकिन वे विद्वान
नहीं होते, इसलिये यहां अतिव्याष्ति दोष भी है । प्राचीन प्रन्थ-
कारोंने ऐसे मिश्रव्क्षणामासोंका अल्ग उल्लेख नहीं किया है |
क्योकि क्षणामासके द्वारा ठक्षणके दोष ही कह्दे जाते हैं । हेत्वा-
भासम भी एक जगह अनेक दोष होते हैं, परन्तु मिश्रहेत्वा-
भासोंका नाम अछ्ग नहीं खखाजाता; क्योंकि इससे व्य्ैका
विस्तार होता है । यही वात छक्षणामासके विषयमें भी समझना
चाहिये । इसीलिये रक्षणाभासके तीन ही भेद किये गये हैं ।
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