कीर्ति स्तम्भ | Kirti Stambha

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Kirti Stambha by श्री हरिकृष्ण प्रेमी - Shri Harikrishna Premee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला शक १७ महाराणा संगरामर्मिहजी 1 मेवाड के वर्तमान परम प्रतिष्ठित राजवञ के संस्थापक अपने मामा के भव पर श्रपना राज्सिहासन रखकर एक श्राद्न कायम कर गय ह्‌ । रायमल-छि- पृथ्वीराज, तुम सत्ता-प्राप्ति के मद मे उन्मत्त हौ गये हो । वीरवर वाप्पा रावन्न के गुभ उदेश्य से किये गये आ्रादर्ण कार्य को ग्रपने अतर की कालिमा से कलकित करने का यत्न मत करो। [हां देश-हित का प्रदन उपस्थित हो हमे सारे नाते, ममता, माया श्रौर मोह के ऊपर उठकर कार्य करना चाहिये। कृष्ण को श्रपत अत्याचारी मामा का वध करना पडा ধা, নিইজিনী ঈ ভা ইল की स्वाधीनता को रहन रखने का सकल्प करने वाले देज-द्रोही मामा के मस्तक से राजमुकुट छीनकर विदेणी सत्ता की भारत में बढती हुई बाढ़ को अपने पराक्रम से रोकने वाले वाप्पा रावल का भारतीय इतिहास चिरक्रणी रहेगा। सदुह्ेश्य के हिंत हमें झपनों से भी संग्राम करना पड़ जाता है |) मेने भी अपने अग्रज विनृहन्ता उदाजी से राजमुकुट छीनकर श्रादि पुरुप बाप्पा रावल की परपरा का पालन कियाहै। उ्दाजी ने पिताकीहत्याकी हस अपराध के लिये सभवत. भेवाडइ राजवण उन्हें क्षमा भी कर देता, किन्तु मालवाओर गुजरात की विदेशी राजनत्ताश्नों को मेवाड़ राज्य की भूमि देकर अपना सहायक, सहायक व्या-- स्वामी वनाना मेवाड का स्वाभिमान कैसे स्वीकार करता ! मेवाउ की दीर प्रजा, सीसोदिया शाखा के शर वरज, मेवाडकी सम्मान-रक्षा में शताव्दियो से मस्तक चढाते रहने वाले सामत शादि सबके एक स्वर आग्रह को रायमल कैसे टालता ? मेवाहइ राज्य का अस्तित्व जिनकी अश्रांखी मे शूल की भाँति चुनता है - ( रापमल छा वाद्य पूर्ण भी नहों होने पाता कि सूरजमल प्रदेश करता है । घ्ूरणमऊल भी त्तीनों राजकुमारों के समान बहुमूल्य




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