शिवा- साधना | Shiva Sadhana

Shiva Sadhana by श्री हरिकृष्ण प्रेमी - Shri Harikrishna Premee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द् मान पात्रों के मुख से उनकी स्वाभाविक भाषा बुछवाई गई है । अभी तक हिंदी-छेखकों की यही परिपाटी रही है । हिंदी-नाटककारों में प्रसाद जी ही ऐसे हैं जिनके नाटकों में उदू-माषा के दाब्दों का अभाव है किंतु उनके नाटकों में मुसलमान पात्र आए ही नहीं है । इस नाटक में एक शब्द पगोड़ा भाया है । यह उस काल का सिक्का था जिसकी कीमत ६ रुपयों के बराबर थी | इस नाटक में पात्र-सूची पर्याप्त लंबी होगई है लेकिन इससे नाटक के रठन में कोई सिंथिल्तों नहीं आई क्योंकि अनेक पात्र ऐसे हैं जो एक-एक या दो-दो दृष्यों में आते हैं मुख्य पात्र तो शिवाजी जीजाबाईं रामदास और औरंगज़ेब ही हैं जिनका अस्तित्व पहले अंक से अंतिम अंक तक बना रहता है । इन्हीं पात्रों के कारण नाटक के हर्य अंत तक एक सूत्र में बैँधे हुए हैं । नाटक कसा बन पढ़ा है इस विषय में में कुछ न कहूँगा। माँ- भारती से साहित्य-ममंज्ञों और पाठकों से स्नेह आशीर्वाद भोर प्रोत्साहन की भीख माँगता हुआ मैं अपनी बात समाप्त करता हूँ । --प्रेमी




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