आज के लोकप्रिय हिन्दी कवि | Aj Ke Lokpriya Hindi Kavi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सम्बन्धित कार्यक्रमों की तफसीलें भी केन्द्र से परिधि तंक जाती हैं। वे -आत्मकेन्द्रित होकर भी सावंभौम हैं । राष्ट्रीयतां, कवि और गांधी विचार से सम्बन्धित कविता का भी यही अन्तर है! मने अगर कहीं हिन्दुस्तान के लिए लिखा है तो वह विश्व के किसी अंश के विरोध में कदापि नहीं जा सकता । ০ शब्द अपने आप और अपने परिवेश को बदलने के सशक्त माध्यम है} मेरा परिवेश मेरे शब्दों से बदला है या नहीं इसे देखना आसान है । लगभग नहीं बदला। मैं बदला हूं या नहीं, इसे देखना या दिखाना कठिन है | लेकिन मैंने अनुभव किया है कि मेरे लिखने ही ने मुझे सचेत रखा है और मैंने ऐसा करने से सदा पनाह मांगी है जो मेरे लिखते हुए शब्दों के प्रतिकूल जाता 'हो। अशरण शरण ने मुझे ऐसी पनाह दी ही है। .. तुम्हारा --भवानीप्रसाद सिध वाणी के गौरव क 1 कवि कविता की भाषा अक्सर व्याकरणपरस्ती का विरोध करती आई है 1 उसके जड़ चौखटों में बंधते हो। वह अर्ध-दुर्बल और लोकगामी हो जाती है | उसके ध्वनि-संकेत और पद-विन्यास इतने नियमित और रूढ हो जाते हैं कि आने वाली प्रतिभाओं को नये सिरे से अपना साज-सामान सम्हालना पड़ता है। भवानी भाई जब इस ओर आए समस्याएं कई थीं। केवल लिखने और बोलने की भाषा ही अलग नहीं थी लिखने और लिखने की भाषा ही अलग थी) यह्‌ प्रसाद ओर प्रेमचन्द को आमने-सामने करके देखा जा सकता है। एक वह भाषा थी जिसे हम कोरी साहित्यिक कह -सकते हैँ ओौर दूसरी वह्‌ जो लोक जीवन से जुडी हुई थी । उसका व्याकरण किताबों भें बंद न था बल्कि जनता द्वारा अनुशासित और नियंत्रित था।




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