कुण्डलिया | Kundaliya

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Kundaliya by गोविन्द सिंह - Govind singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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` १16. कुण्डालिया-गि९ । अब बिछुरे कब मिलो कहो केसी নানিআই ॥ कह गिरिपर काविराय .सुनो हो विनती एहा। हे करतार दयालु देह नानि मित्र बिछोहा॥२८॥ साई तहां न जाइये, जहां न आप शोधाय ! मरण নি जन नही, गदहा दतं खाय ॥ বা হাত खाय गउपर दि छलगावे। सभा बेठि मुसक्याय यही सब नृपकों भावें॥ कह गिरिधर कविराय सुनो रे मेरे भाई। तहां न करिये वास तुते उाठि आइय सांइ ॥ २९ ॥ गया पिंड जो देह, पितरकों अपने तारे । करण बापकर देह, टे पिर सँभारे॥ हरी भूमि गाहि लेह द्रवन शिर खड़े बजावे। पर उपकारन करे पुरुषमें श्ञोभा पावे॥ साई वंश सराहिये तल बरी सब दलमदढे। इतनो काम जो ना करे तो पुत्रखेह कन्याभले३ ०॥ _सिष्िन तिखवत पिंक पि बेड़ा परे सैभार ।




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