श्री प्रवचनसार | Shri Pravachansar

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Shri Pravachansar by परमेष्टिदासजी न्यायतीर्थ - Parmeshtidasji Nyayteerth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ गुरुदेवके पवित्र जीवत प्रत्यक्ष परिचयके बिता ओर उनके श्राघ्यात्मिक उपदेशके विना इस पामय्‌ को जिनचारणीके प्रति लेशमात्र भी भक्ति या श्रद्धा कहाँ से प्रगट होती ? भगवान कुन्दकुन्दाचार्यदेव शझौर उनके शास्प्रोेकी रचमात्र महिमा कहाँसे आती ? तथा उन शास्रोका अर्थ ढूंढ निकालमेकी लेश्ष मात्र शक्ति कहांसे आती ? इसप्रकार अनुवादको समस्त श्षक्तिका मूल श्री ग्रुर्देव ही होनेसे चाल्तवमे तो महाराज श्री की अमृतवाणीका प्रवाह ही-उनसे प्राप्त अमूल्य उपदेश ही-यथा समय इस अनुवादके रूपमे परिणत हुआ है | जिनके द्वारा सिंचित शक्तिसे रोर जिनका पोठपर बल होनैसे इस गहन शाक्षके अनुवाद करनेका मैंने अति साहस किया और जितकी कृपासे वह লিলিছন समाप्त हुआ उत्त परमपुज्य परमोपकारी श्री गुरुदेव (श्री कानजी स्वामी ) के चरणारविन्दमे श्रति भक्तिमावसे में वन्दना करता हूँ । पूज्य व्हेन श्री चम्पाव्हेन तथा पूज्य न्हेन शान्ताब्हेनके प्रति भी इस अनुवादको पूर्ण करते हुये उपकारवशताकी उम्रभावनाका अनुभव हो रहा है जिनका पवित्र जीवत श्रीरबोच इस पामरको श्री प्रवचनसा रके प्रति, ध्रवचनसारके महान््‌ कर्ताके प्रति ओर प्रवचचसा स्मे उपदिष्ट चीतरागविश्ञानके प्रति बहुमान वृद्धिका विशिष्ट निमित्त हुआ है ऐसे उन पृज्य ब्हेनोके प्रति यह हृदय श्रत्यंत नम्रौभूत है । इस अनुवादमे भ्रनेक भाइयोसे हादिक सहायता मिली है । मानतीध श्री वकील रामजी भाई मारोकचन्द दोशीने अपने भरपूर घामिक व्यवसायोमेसे समय सिकालकर सारा अनुवाद बारीकीसे जान लिया दै, यथोचित सलाह दी है ओर अनुवादमें आमनेवाली छोटी-वडी कठिनाइयोका अपने विशाल ष्णा ज्ञानसे हल किया है । भाई श्री खीमचन्द जेठालाल शेठने भी पूरा अनुवाद सावधानी पूर्वक আঁলা है, श्रोर अपने सस्क्ृत भाषाके तथा शासख्यज्ञानके श्राघारसे उपयोगी सूचनायें दी हैं । भाई श्री ब्रह्मचारी चन्दूलाल खीमचन्द मोबालियाने हस्तलिखित प्रतियोके आधारसे सस्रत टीकार्मे सुधार किया है, भ्रनुवादका कितना ही भाग जाचा है, शुद्धिपत्र, अनुक्रमणिका श्रौर गाथा सूची तैयार की है तथा प्रूफसशोधनका कार्य किया है। इत सब भाइयोका मैं रन्त करण पूर्वक आभार मानता हूँ । उनकी सहृदय सहायताके विना अनुवादमें अनेंक चुटियाँ रह जाती । इनके श्रतिरिक्त अन्य जिन जिव भाइयोको इसमे सद्दायता मिली है में उत सबका ऋणी हैं । मैंने यह अनुवाद प्रवचनसारके प्रति अत्यन्त भक्ति होनेसे भोर ग्रुरदेवकी प्रेरणासे प्रेरित होकद निज कल्याणके हेतु भवभयसे डरते डरते किया है । अनुवाद करते हये लाखफि मुल आश्चयमे कोई अन्तर न पढने पाये, इस ओर मैंने पूरी पूरी सावधानी रखी है, तथापि श्रल्पन्ञताके कारण कही कोई माशय बदल गया हो या कोई भूल होगई हो तो उसके लिये मैं शाश्रकार श्री कुन्दकुल्दा- चार्यदेव, टोकाकार श्री श्रमृतचन्द्राचायं देव श्ौद मुमुक्षु पाठकोसे प्रंत करण पूर्व॑क क्षमायाचना करता हैं। सेरी आंतरिक भावना हैं कि यह भ्रनुवाद्‌ भव्यजीवोको लिनकथित वस्तुविश्नालका निरय कराकय, बतीन्दरिय ज्ञान श्रौ सुखको श्रद्धा कयाकर, ध्ये द्वव्यक्ा सपं स्वात्तच्य समभाकर,




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