परमानन्द सागर | Parmaanand Sager
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
522
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
डॉ गोवर्धननाथ शुक्ल - Dr Govardhannath Sukl
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हरवंशलाल शर्मा - Harvanshlal Sharma
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ११ এ
हैं। राघाशृष्ण प्रकृति श्रौर पुरूष ह 1 इनमें श्राश्नवाश्नयी भाव है। सहजिया सम्प्रदाय
एक तान्त्रिक मार्ग कहा जा सकता है परन्तु शुद्ध तान्त्रिक मत से साधना पक्ष में इसकी पर्याप्त
भिन्नता है ।
मध्वाचाये के सम्प्रदाय का वगाल पर बडा प्रभाव पडा था जिसके फलस्वरूप बगाल
मे गौडीय वैष्णव सम्प्रदाय की परम्परा चली। गौडीय वैष्णव सम्प्रदाय में सख्य, दास्य
तथा वात्सल्य भावो को भी उपासना में उपादेव माना है चिन्तु सटजियः वंप्णव केवल माधुयं
भाव की उपासना को ही श्रेष्ठ समभते हैं। गौडीव वंप्णवोमे तो परकीया तत्त्व को सिद्धान्त
रूप से ही स्वीकार किया था पर महजिया दैप्णवों ने इस तत्त्व को व्यावहारिक रूप भी
दिया । वास्तव में सहजिया वैष्णवों के मिद्धान्त बौद्ध सहजयान के सिद्धान्तो से बहुत मिलते
जुलते हैं। चण्डीदास की उपास्य वाशुली देवी वज्यानियों की बच््रधात्वीरवरी का ही दूसरा
रूप है ! सहलजिया सम्प्रदाय के अतिरिक्त वगाल म ्राउल, चाउल, साई, दरवेश झादि भ्रन््य
कट सम्प्रदायो कामी प्रचारया1 बाउल तो महलिया वैष्णवो से भीएक कदमश्रौर
प्रागे ये। सहजिया लोगो का प्रेम राघाश्रौर कृष्ण दो व्यक्तियों की श्रपेक्षा रखता है जबकि
वाउलो का प्रेम 'मनेर्मानुस' के प्रति होता है। उनका कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर
एक श्रलौकिक प्रेमपात्र है। उसे उसी के प्रति प्रेम करना चाहिये ।
जैसाकि पहले कहा जा चुका है वगाल की गौडीय शाखा माध्व सम्प्रदाय की ही एक
शाखा कही जा सकती है पर इसका व्यावहारिक पक्ष माध्व सम्प्रदाय से भिन्नहै। चैतन्य
महाप्रग्मु के आविर्भाव को भत्तिक्षेत्र मे एक चमत्कार समभना चाहिये । इस भक्ति-प्रान्दोलन
के युग में उत्तर भारत के वंण्ण््वाचार्यो मे বন্য महाप्रश्चु का नाम श्रग्रगण्य है। यह एक
विचित्र घटना है कि चंतन्य महाप्रभु की कर्मभूमि वगाल ही रही पर उन्तके सम्प्रदाय का
त्रजभूमि से विशेष सम्बन्ध रहा । वास्तव भे चंतन््यमत का श्ञास्त्रीय विवेचन ब्रजभ्ृूमि में ही
हुआ । भाध्व मत के अनुयायियों में माधवेन्द्रपुरी, गौडीय सम्प्रदाय और माध्व सम्प्रदाय के
वीच में सेतु का कार्य करने वाले हैं चैतन्य महाप्रभ्ु। इन्ही के यह शिप्य ईश्वरपुरी के
थिष्य थे, यद्यपि दीक्षा उन्होंने केशव भारती से ली थी। भक्ति के प्रतार झौर प्रचार में
चेतेन्य महाप्रभु ने बडा योगदान दिया | इन्होंने भारतवर्ष के सभी विष्यात तीर्थ स्थानों की
यात्रा की । दक्षिण के तीर्थो के दर्शन से इनकी प्रवृत्ति वृन्दावन के उद्धार की ओर भुकी ।
वेप्णएव धर्म के प्रचार में इन्हे नित्यानन्द जैसे सहयोगी मिले और दोनो ने मिलकर समस्त
उत्तरी भारत को विशेषकर वगाल को भक्ति स्लोत से च्राप्लावित्त कर दिया} ब्रज, विशेषकर
वृन्दावन, के उद्धार का श्रेय बहुत कुछ चैतन्य महाप्रभु को है। यह विपय यद्यपि श्रमी तक
विवाद का बना हुम्ना है फिर भी वृन्दावन के उद्धार में चैतन्य महाप्रश्नु का जो योगदान है
वह कम महत्त्व का नहीं है। माववेन्द्रपुरी उससे पहले दृन्दावन भे गोपाल की मूृत्ति स्थापित
कर चुके थे, चेतन्य महाप्रभु ने वृन्दावन के उद्धार के लिये अपने दो प्रधान शिष्यो को भेजा !
ये दो भक्त घे लोकनाथ गोस्वामी झौर भूगर्भाचार्य । चंतन्य के सहयोगियों में प्रद्॑ ताचारय का
नाम भी उल्लेखनीय है, चेतन्यमत को शास्त्रीय कप देने का श्रय चैतन्य के शिष्य पद
गोस्वामियो को है जिनके नाम हैं रुप, सनातन, रघुनाथदास, रघुनाथ भट्ट, गोपाल भट्ट
और घीव गोस्वामी ।
भाध्व मत की शाला होने पर भी चंतन्यमत का दर्णानिक दृष्टिकोश स्वनस्त्र है
माध्व सम्प्रदाय का सूलावार ह त्वाद दै जवकरि चंतन्य का अचिन्त्यनेदाभेद । श्र्वातु भगवानु
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