भगवती अराधना | Bhagwati Aaradhana
लेखक :
बिशम्बर दास महाबीर प्रसाद जैन - Bishambar Das Mahabeer Prasad Jain,
सदासुखदासजी काशलीवाल - Sadasukhdasji Kaashlival
सदासुखदासजी काशलीवाल - Sadasukhdasji Kaashlival
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
781
श्रेणी :
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बिशम्बर दास महाबीर प्रसाद जैन - Bishambar Das Mahabeer Prasad Jain
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सदासुखदासजी काशलीवाल - Sadasukhdasji Kaashlival
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय
कुशोल नष्ट पुनि
यथा छुन्द जाति भ्रष्ट मुनि
संसक्त ह
इन्द्रियासक्त मुनि भ्रष्ट है
इन्द्रिय कषाय बिजयी के ज्ञान
कार्यकारी है
बाहा साधुकासा भ्राचरण और
अन्तरंग मलीन वृथा है
बाहा प्रवृति शुद्धकर प्रात्माकी शुद्धता
भ्रपेक्षित है
अभ्यन्तर शुद्ध के बाह्य क्रिया नियम
से शुद्ध होगी
बाह्य शुद्धता प्रभ्पन्तर शुद्धता का
सूचक है
इन्द्रियासक्त व्यक्तियों के दृष्टान्त
कोघ कृत दोष
मान कृत दोष
मायाचार कृत दोष
मायाकारी कुम्भकार का दुष्टन्ति
लोभ कृत दोष
मृगच्वज क! दृष्टान्त
कार्तवीर्यं का दृष्टान्त
सामान्य इन्द्रिय कपाय जनित दोप
प्रौर निराकरण वे उपाय
पृष्ठ
४७९१
४७३
हज
৩৬
४८१
हद
নর
ट
1
४८५ `
४८५
४८७
४६०9
४९२
४६३
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६५
६९५
( च )
; विषय
| क्रोघ कृत दोष जीतने का उपाय
! मानकृत दोष नं
` मायाचारक़ृत दोष „+,
लोभ कृत दोष ॥
, निद्रा विजय का उपाय
| तप महिमा
शरीर सुख मे ग्रासक्त के तप मे दोष
| श्रालसी के तप में दोष
' तपद्चरण के गुण
| निर्यायकाचायं के उपदेश से सस्तर
| प्राप्त साधु प्रसन्न होता है
¦ उपदेश सुन, सस्तर से उठ, गूर वन्दना
भादि किस प्रकार करे
३४ धारणा भ्रधिकार
' क्षपक के देने योग्य झ्राहार
| क्षपक के वेदन! होने पर प्रन्य साधु
। का कतव्य
३५ कवच प्रधिकार
, शिथिलता दूर करने हेतु मीठे वचन
द्वारा साधु को संबोधना
' साधु को चलाय्मान नही होना
विभिन्न परिषह् सहने वाले दृष्टान्त
, नरक में उष्ण वेदना
। नरकं मे शीन वेदना
तरक के अन्य दु ख
पृष्ठ
५११
५०३
১০৮
४०६
५०९६
५०९
५१०.
५१०
५११
५१६,
५१७ ,
५१६
५२५०
५२४
५२५
५२९५७
५३१
५३८
५२८
५२८
!
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विषय ४)
तिर्थवगति के दुख ५४४
देव मनुष्यगति के दुख ५४६
कर्मोदय जनित वेदना को कोई दूर नही
कर सकता ५५२
संयमी को मरण मला पर संयम-
नाश ठीक नही ५५३
कर्म सबसे बलवान है ५५४
प्रसात में क्लेरित होना उचित नहीं ५५५
ब्रत भंग पाप है ५५७
प्रत्यार्यान का भग मरण से बुरा हे ५५८
ग्ाहार की लपटता सर्व पापों को
कराती है. ५५६
ग्राह्मर लम्पटी के दृष्टान्त ५६२
ग्राहार लम्पटी के क्लेश ५६५
शरीर ममत्व त्याग का उपदेश ५६७
३७ समता झधिकार ५७१
इष्टानिष्ट में राग ढ् ष नही करना ৩৭
समस्त पदार्थों में समभ।व रखना ५७३
साधृकी मत्री कारुण्य भूदिता एव
उपेक्षा भावना का स्वरूप ४३४
३७ ध्यान भ्रधिका र ५७५
क्षपक्र शुभ ध्यान करता है, ग्रशुभ नही. »
र्त ध्यान के मेद ५७६
अनिष्ट षयोगज प्रार्तध्यान कल
इध्ट-वियोगज ग्रार्त्तध्यान ५.०५
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