पौराणिक आख्यानों का विकासात्मक अध्ययन | Pauranik Akhyanon Ka Vikasaatmak Adhyayan

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Pauranik Akhyanon  Ka Vikasaatmak Adhyayan by उमापति राय चन्देल - Umapati Rai Chandel

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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: १ : पुराण-साहित्य : एक परिचय पौराणिक आखवान उही आख्यानो को कहेंगे जो छुराणा से लिये गये हैं। इन आध्याना के स्वरूप को समझने के लिए पुराणों का सामायय परिचय अपेक्षित है। अठारह पुराण पुराणों या महापुराणो की सख्या अठारह मानी जाती है ।' ये कृष्ण द पायन या व्यास रचित अथवा सपादित माने जाते हैं ! वस्तुत व्यास रचित पुराणो कौ सव्या बीस है 1 विविध पराणो मे अठारह पुराणो का उल्लेख जिस क्रम से किया गया है, उसमे श्र तरपायाजातादै, नि-तु मधिकाश पुराणः जिस দল से सहमत है, वहे यह दै - (१) ब्रह्म (२) पदम (३) विष्णु. (४) शिवया वायु (५) भागवत (६) नारदीयों (७) माकण्डेय. (५) अग्नि (६) भविष्यत (१०) ब्रह्मवैवत्त (११) लिग (१२) वाराह १ विष्ण पुराण ३।६ भागवत पु० १२७, १३, पद्म पु० १1८६ ६३ वाराह पु० ११२ मत्स्य पु ५३ अग्ति पु० २७२ और माकध्डेय पुराण १३४, लिय पु १३६ भविष्य पु० १३१, शिव पु० ७।१ सर द पुराण १।४ आदि में अठारह पुराणों को नाम-गणना करायी गयी है। २ जिन पुरार्णों में पुराणों को नामावलि और सझूया दी गयी है उनमें धद्या के सवध में सो कोई মু हे है परन्तु (१) दिव और वायु पु० तथा (२) भागवत ओर देवी भागवत के युस्मों मे ही रे কু शोर दूसरे को उपपुराण मानने ही प्रवृत्ति है। कुल मिलाकर सढ्या को अठारह पिला ह । 0.0 गई है। इस प्रकार विधिन पुराणों में दी ययी पुराणों की नामावलि में झतर मल हैं। पहमपुराण सम्प्रदाय कौ पुष्टि कटने वकत पुराण देवौ भागवेद को पुराण म मानकर उपपुराण भाष्य पुराण ९।१ भाग, (षाषालचण्ड 8० ११५।८६ ६३} ब्रह्मववततं पु० (४।९३१।१ २५} ३।।२० २४ शिव बु० ध 4 १२।१३॥३ ८ भाकण्डय पुराण १३४, लिग पुराण १३६ विष्णु पु० বি তু কা হা तदा सकद पु० १1४ में अठारह पुराणों में वाय को महापुराण मे मानकर আফরান पा व हि । धारक्स सोग शिव ओर वाय प्राण को एक मान लेते हैं উট है। रिन्यु वे दोनों | में सै प्रदम को महापुध्रण मानकर बठारह पुराणों की सख्या पूरा कर ५, ही दातें भ्रामक है। न हो शिव पुराण और वायू पुराण हो एक हैं और गे हो देवी भापवद उपयराण है। इसकि दोंस मानकर जान রাহি রন ओर जा क धुराणों को सल्ष्या को दोंस मानकर घलता उचित वान ३ विष्णु भाषयद (१२१३) पटम बाराह সে दि हू अग्नि मौर माद्ष्ध्य मादि। व साएदीय मोर बहस्तारटीय दो पुराण मिलते है नये से एक को उपपुराण तथा दूसरे का महा राग कहा जाता है। गाएटेय पराच से अपनी महता सूचित करने के सिए बहनासवीय को প্লে दिश्यद शवाता पढा। हपते इहतारदोय को हो सर मोष रसदन मिदव स ১৩১ अब सम्बध में भोर भी दे०




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