ऐतिहासिक भौतिकवाद | Aetihaasik Bhautikvaad
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
43 MB
कुल पष्ठ :
534
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
मर्मंथनाथ गुप्त -Marmnthanath Gupt
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रमेन्द्रनाथ वर्मा -Ramendranath Varma
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)শ্
१२ एतिहासिक भौतिकवाद
উলিন के व्यक्तित्व पर क्या कहना ह । १९१७ की फरवरी में जब पूँजीवादी
क्रान्ति हो गई, इसके बाद लेनिन रूस के अन्दर दाखिल हुए । अब तकवे
अपने .देश से बाहर भागे भागे फिर रहे थे, किन्तु एक ईगर पक्षी की तरह अभी
दृष्टि रूस पर निबद्ध थी। यह् तो इतिहास सम्मत बात है कि लेनिन के रूस
में आने तक वाल्शेविक दल के अन्य भैता किसी निशुचय' पर नहीं पहुंच पाए थे
कि आगे क्या करना है। छेनिनने आते ही सारी बातों की काया-पलट कर
दी। सच बात तो यह है कि उन्होंने देश में प्रवेश कर अपने सुप्रसिद्ध अप्रेल
वक्तव्य के द्वारा दल के सामने जो दृष्टिकोण पेश किया, वह् इतना नवीन था `
कि दल के नेता उसे सुनकर चौधिया गए, ओर उसे अस्वीकार कर दिया।
फिर भी लेनिन अपनी आन पर डटे रहे ओर एक एक व्यक्ति करके सारे दल
को अपने मत में ले आये, और फिर उन्हीं के बताये हुए मार्ग से चलकर दल
क्रान्ति का नेतृत्व कर सका। इसी पर ट्राटस्की लिखते हेँ स्वाभाविक रूप से
यह प्रश्न उठता है कि यदि लेनिन १९१७ के अप्रैल में रूस न पहुँच पाते तो
क्रान्ति का विकास क्योकर होता? हमने रूसी क्रान्ति का जो' विवरण दिया ”
है, उससे यदि कुछ प्रमाणित होता है तो यह कि लेनिन क्रान्तिकारी
भ्रक्रिया के उत्सस्थल (0610010126) नहीं थे, बल्कि वे केवर दृश्यगत
ऐतिहासिक प्रक्रिया की कड़ी में अपना स्थान रखते थे। हाँ वे उस जंजीर
की बहुत बड़ी कड़ी थे। स्वहारावर्ग के अधिनायकत्व को, उस समय की
मौजूदा परिस्थितियों से निकालना था, किन्तु उसे निकालना अभी बाकी था।
_ऐसा दरु के बगैर नहीं हो सकता था। दल ऐसा करने में तभी सफल हो' सकता
গা; जब वह परिस्थितियों को सम'क छेता । इसके लिए लेनिन की जरूरत थी ।
उनके रूस पहुँचने के पहले एक भी वाल्शेविक नेता क्रान्ति का निदान करने
का साहस नहीं करता था। कामनेव और स्टालिन का नेतृत्व घटनाओं के
भाकोरों से श्वमाजवादी देदभक्तौ' की ओर भुक चुका था। क्रान्ति ने लेनित
और मेनशेविकवाद के बीच कोई जगह नहीं छोड़ी थी। वाल्शेविक दल के अन्दर ;
आन्तरिक कलह बिलकुल अनिवाय थी। लेनिन के आ जाने से यह प्रक्रिया केवल
' द्वरतीकृत हुई। उनके व्यक्तिगत प्रभाव के कारण यह संकटकाल हृस्व हौ गथा ।
फिर भी क्था थह विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि लेनिन के बगैर ही
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