शब्द शब्द पाञ्चजन्य | Shabd-shabd Panchjny
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
94
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं० वागीश शास्त्री - Pandit Vaageesh Shaastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कर रही हैं इस प्रकार काव्य का शाश्वत रूप सहुदय पाठकों को यहां
देखनें को मिलेगा ।
अपने अभीष्ट गन्तव्य तथा साध्य तक पहुँचने के लिये इस बाल
रचनाकार को अक्षर ज्ञान से लेकर काव्य स्वरूप परिचय तथा काव्य
मच के लिये अपेक्षित संप्रेषणीयता आदि साधत जुटाने में जिस सहज
क्रपा-करुणा का प्रसाद प्राप्त होता रहा है वह निश्चित ही पूवेजनन््म के
पुण्यों का प्रताप है । अन्यथा--'प्रतिकुलतामु पगते हि विधौ विफलत्वमेति
बहु साधनता: अर्थात् विधि के प्रतिकूल हो जाने पर साधनों को घिफल
होते किसने नहीं देखा ? राणा कालिज पिलखुबा के मेरे अक्षर प्रदाता
गुह तथ। श्रद्धय पिताजी के साथी होने के नाते मेरे चाचा जी डॉ० श्याम$
না पिह रघुवंशी, डॉ० जगदीश चन्द्र गुप्त, डॉ० बदन सिंह राघव तथा
डॉ० चन्द्रपाल शर्मा का वरदहस्त जहाँ मेरी बाणौ को परिष्कृत करता
रहा है वहीं सम्मान्या डॉ० रमा सिह का सतत शुभाशीर्वाद मेरे बालकवि
को पोषण प्रदान करता रहा है। लाजपत राय कालिज साहिबाबाद के
मेरे विद्या गुरु श्रद्धेय डॉँ० गणेशदत्त शर्मा प्राचार्य को अकारण करुणा तो
अवर्णतीय ही है जिनका हूपा प्रसाद मैं संस्कृत प्रवक्ता” के रूप में भी
प्राप्त कर रहा हूँ।
मेरी काव्य-यात्रा के प्राथमिक विश्वान्ति केन्द्रों पर प्मश्नी पं०
হীন चन्द्र सुमन, डॉ० ब्रजेन्द्र 'अवस्थी' तथा माननीय मधुर शास्त्री का
मधुर मांगलिक साधुवाद मेरा पवित्र पाथेय रहा है। कविता की वर्ण-
माला का यथार्थ ज्ञान कराने के लिए मेरे श्रद्धास्पद श्री कृष्ण 'मिन्र'
तथा डॉ० कुंभर 'बेचेन' जितना स्तेंहाशीष प्रदान करते रहे हैं वह मेरी
अक्षय धरीहर है। प्रो० वाघुदेव शर्मा (मेरठ), प्रो० बेदार 'सरस', श्री
जीत सिंह जीत, कविवर राजेन्दर राजा रमेश बाबू व्यस्त (दिल्ली
भाई कमलेश मौर्य तथा प्रो० ओमपाल सिंह “निडर' सदश मेरे परमहित-
चिन्तकों ने मुझ अकिड्चत को मंच प्रदान करके मेरे उत्साह में आशातीत
वृद्धि की हैं। संस्कारभारती के श्री योगेन्द्र जी व बॉकेिलाल गौड़, मात-
तुल्या डॉ० पद्मा 'साधिका' तथा बलिदानी गाथाओं के गायक श्री वेद
प्रकाश 'पुमन भेरे शीर्ष पर आशोष तथा पीठ पर प्रेरक पाणिप्रसार करते
डा रहे है, श्रद्धय अग्रज हरिभोमपेवारका अपार प्यार मुझे हर क्षण
दुलराता रहता है । ईन सभी उदार चरितो का कण यै विनतभावसे
स्वीकारता ह । मेरे भौतिकः साधनों में अध्यात्म शक्ति का संचार कर
१६ शब्द-शब्द पांचजन्य|वागीश 'दितकर
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