सत्ता और संघर्ष | Satta Aur Sangarsh

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Satta Aur Sangarsh by बाल्मीकि त्रिपाठी - Balmiki Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्ता और संघर्ष नन्व, न्त “हुजूर का हुक्म बजाते का मतलब होगा झाहजादा साहब की हुक्म अदुल्नी! कनीज से ऐसी गुस्ताखी की उम्मीद हुजु र ने करें। अज्ञों का मोहक संचालन कर परिणाम जानने के अभिप्राव्र से वह भिरवर को कनखियों से देखने लगी । गिरबर क्षण मात्र के लि! किकलेब्य विमृढ़ हो गया । सहसा सारी कटोरता ने जाने कहां विलीन ही गई। मरमं दृष्टि म परिचारिका की भोर दख कर कद्रा--' बाई जी कहाँ होंगी इस वक्त ? “हुजुर सब जानते है मेरी जुबान से हो क्यों कहलाना चाहते हैं ? लणज्जाजनित रक्तिम आभा से परिचारिका का चेहरा आभासित्र हों उठा । “क्या बाई जी वे सूचित करने का कोई उपाय नहीं है ? “घाहजादा साहव की खिदमत में हैं वढह्ू इस वक्त, उन्हीं का हुक्म है कि जो भी आए वापस जाने को कह दिया जाए। “तब तो कदाचित यह तम्हारी ही कृपा का परिणाम है কি अभी तक हवेली से बाहर नहीं कर दिया गया ।? कह गिरथर धीरे मुस्कराया । | “हुजर का ही तो सब कुछ है यहाँ का । हुज्र के साथ ऐसे पैव आने की कौन हिमाकत कर सकता है | हुजुर की एक नजरे इनायत के लिये तो शहर के बड़े-बड़े रईस तरसने रह जाते हैं। यह तो मेरी खुश किस्मती है कि हुजूर ने कनीज की फिजूल প্রানী में अपना इतना बक्त जाया किया।?' गिरधर की स्थिति झाहजादे के. पश्चात की-सी थी । “স্ব! হী बात का तो दख है कि इतनी जिन्दगी व्यर्थ गई । समय का सदुपयोग तो तुम्हारे साथ बात करने में है। आज महसूस कर रहा हूँ कि पहले क्‍यों न मुलाकात हुई तुमसे ।” परिचारिका पानी-पानी हो रही थी। अप्रत्याशित सौभाग्य की




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