ब्रजभाषा सूर - कोश भाग - 6 | Braj Bhasha Sur - Khosh Bhag - 6
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
201
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १०१७ )
निवास--संशा पुं. [ सं. ] रहने की क्रिया या भाव।
(२) बास-स्थान, गृह, घर। उ.--सरदास के प्रभु
बहुरि, गए बैकुठ-निवास--३-११ । (३)वस्त्र, कपड़ा |
निवासित-वि [ स निवास ] बसा या बलाया हृभ्रा ।
निवारसः-- सद्व पुं, [ स. निवासिन ] रहने-बसनेवाला ।
निवास्य--वि. [ सं, ] रहने-बसने योग्य ।
निविडू--वि. [ स, ] (१) घना । (२) गहरा ।
निविष्ट--वि. [ सं. ] (१) एकाग्र । (२) एकाग्र चित्त-
वाला | (३) घुसा हुआ । (४) स्थित ।
निवृत्त--वि, [स ] छूटा हुश्ना या अलग । (२) विरवत ।
(३) चो टूटी पाचका हो |
निवृत्ति--संज्ञा स्त्री, [स, ] (१) मुक्त, छुटकारा |
(२) विरक्ति, 'प्रवत्ति' का विपरीताथक ।
निवेदू--सज्ञा पुं. [ सं. नैवेद्य ] देवता का भोग ।
निवेदक--संज्ञा पुं. [ सं. ] निवेदन करनेबाला, प्रार्थी ।
निवेदन--संज्ञा पुं. [ सं. ] (१) प्रार्थना । (२) समर्पण ।
निवेदना-क्रि, स. [ हिं. निवेदन ] (१) बिनतो या
प्रार्थना करना । (२) समर्पण करना, नेवेद्य चहाना ।
निषेदित- वि, [ सं. ] (१) निवेदन किया हुआ । (२)
चढ़ाया चा भ्रपित किया हुआ |
निवेरत- क्रि. स. [ हि. निबेरना ] बयुल करना, लेना,
सग्रह करना । उ. सूर मूर च्रक्र.र गयौ लै ग्या
निवेरत ऊधौ-३२७८
निषैरना- त्रि. स. [ हिं निवेऽना ] (৫) लेना, वसुलना ।
(२) निबटाना । (३) खत्म करना } (४) चुनना,
छाटना । (५) हसना, इर करना |
निवेरा--वि. [हि निवेड़न!] (१) चुना या छाँटा हुश्रा ।
(२) नया, अनोखा ।
निवेरि--क्रि, स, [हि निवेड़ना] खत्म करके |
प्र,--आए निवेरि- खत्म कर भ्राये । उ.~ सूरदास
सब नातो ब्रज को आए नंद निवेरि-२८७५ |
निवेरी- वि. [ हि निवेरा ] (१) चनी-छेटी हई | उ.--
आजु भई केसी गति तेरी ब्रज में चतुर निबेरी | (२)
नयी, श्रनोखी ॥ 3.--मे कह आजु निवेरी आई?
बहुते आदर करति सबे मिलि पहुने की कीजै पहुनाई |
निवेश~ सश्च पुं. [सं.] (१) विबाहु । (र) घर, गृह ।
निशंक--वि, [सं, निःशंक] निडर) नि्भैय । उ.-परम
निशंक समर सरिता तय क्रीडत यादववीर-१०३.-१०२।
निश, निशा-सक्ञा ली. (सं. निशा] (१) रात्रि, रात |
(२) मेष, वृष, मिथुन श्रादि चहु राशियां ।
निशांत--संजञा पु. [स. निशा + श्र॑त | प्रभात ।
निशाकर--संज्ञ पु. [सं.] चंद्रमा ।
निशाचर सज्ञा पुं. [सं.] ( १) राक्षस । (२) उल्ल् ।
(३) चोर ।
वि-जो रात मं चले या विचरण करे ।
निशाचरी--सशा खी. [सं.] (१) राक्षसी । (२) कला ।
निशाचारी-सन्ञा पुं. [ सं. निशाचरिन ] (१) शिव,
महादेव । (२) राक्षस । (३ उल्ल् । (४) चोर |
निशान-- संञा पुं [फा.] (१) चिह्न | (१) किसी पदार्थ
से रकित चिह्न । (३) प्राकृतिक चिह्न या दाग |
(४) विगत घटना था वस्तु सुचक चिह्ध ।
यौ.--नाम-निशान-- (१) शेष चिह्न । (२)
दोषांश |
(५) पता-ठिकाना । (६) लक्ष्य, निशाना |
उ.-तीर चलावत शिष्य रस्खिावत धर निशान
देखरावत--सारा १६० । (७) ध्वजा, पताका;
भंडा ।
निशापति--सन्ञ पु. [सं | (१) चंद्र । (२) कपर ।
निशाता--सज्ञा पु [फा.] (१) लक्ष्य । (२) बह जिसे लक्ष्य
करके कोई व्यग्य या प्राक्षेप किया जाय ।
निशानाथ-सक्ञा पु. [स.] (१) चंद्र । (२) कपुर ।
निशानी-संज्ञा स्त्री [ फा, ] (?) चिह्न, निशान । उ.---
आपुहि हार तोरि चोली वेद् उर नख घात बना
निशानी--१०५७ । (२) स्मृति-चिह्ध, यादगार ।
(३) निशान, पहचान ।
निशापति- सज्ञा पु. [ सं. | चंद्रमा ।
निशामुख-सकश् पृ. [ स. ] संध्या का समय ।
निशावसान- संज्ञ पुं. [ स. | प्रभात, तड्का |
निशास्ता--संज्ञा पु. [ फा. ] भीगे गेहूँ का सत ।
निशि -संज्ञा स्त्री, [ स. | रात, रात्रि | उ,--निशि दिन
হু सूर के प्रभु बिनु मरिब्रो तऊ न जात जियो---
२५८४५. |
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