ब्रजभाषा सूर - कोश भाग - 6 | Braj Bhasha Sur - Khosh Bhag - 6

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Book Image : ब्रजभाषा सूर - कोश भाग - 6  - Braj Bhasha Sur - Khosh Bhag - 6

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १०१७ ) निवास--संशा पुं. [ सं. ] रहने की क्रिया या भाव। (२) बास-स्थान, गृह, घर। उ.--सरदास के प्रभु बहुरि, गए बैकुठ-निवास--३-११ । (३)वस्त्र, कपड़ा | निवासित-वि [ स निवास ] बसा या बलाया हृभ्रा । निवारसः-- सद्व पुं, [ स. निवासिन ] रहने-बसनेवाला । निवास्य--वि. [ सं, ] रहने-बसने योग्य । निविडू--वि. [ स, ] (१) घना । (२) गहरा । निविष्ट--वि. [ सं. ] (१) एकाग्र । (२) एकाग्र चित्त- वाला | (३) घुसा हुआ । (४) स्थित । निवृत्त--वि, [स ] छूटा हुश्ना या अलग । (२) विरवत । (३) चो टूटी पाचका हो | निवृत्ति--संज्ञा स्‍त्री, [स, ] (१) मुक्त, छुटकारा | (२) विरक्ति, 'प्रवत्ति' का विपरीताथक । निवेदू--सज्ञा पुं. [ सं. नैवेद्य ] देवता का भोग । निवेदक--संज्ञा पुं. [ सं. ] निवेदन करनेबाला, प्रार्थी । निवेदन--संज्ञा पुं. [ सं. ] (१) प्रार्थना । (२) समर्पण । निवेदना-क्रि, स. [ हिं. निवेदन ] (१) बिनतो या प्रार्थना करना । (२) समर्पण करना, नेवेद्य चहाना । निषेदित- वि, [ सं. ] (१) निवेदन किया हुआ । (२) चढ़ाया चा भ्रपित किया हुआ | निवेरत- क्रि. स. [ हि. निबेरना ] बयुल करना, लेना, सग्रह करना । उ. सूर मूर च्रक्र.र गयौ लै ग्या निवेरत ऊधौ-३२७८ निषैरना- त्रि. स. [ हिं निवेऽना ] (৫) लेना, वसुलना । (२) निबटाना । (३) खत्म करना } (४) चुनना, छाटना । (५) हसना, इर करना | निवेरा--वि. [हि निवेड़न!] (१) चुना या छाँटा हुश्रा । (२) नया, अनोखा । निवेरि--क्रि, स, [हि निवेड़ना] खत्म करके | प्र,--आए निवेरि- खत्म कर भ्राये । उ.~ सूरदास सब नातो ब्रज को आए नंद निवेरि-२८७५ | निवेरी- वि. [ हि निवेरा ] (१) चनी-छेटी हई | उ.-- आजु भई केसी गति तेरी ब्रज में चतुर निबेरी | (२) नयी, श्रनोखी ॥ 3.--मे कह आजु निवेरी आई? बहुते आदर करति सबे मिलि पहुने की कीजै पहुनाई | निवेश~ सश्च पुं. [सं.] (१) विबाहु । (र) घर, गृह । निशंक--वि, [सं, निःशंक] निडर) नि्भैय । उ.-परम निशंक समर सरिता तय क्रीडत यादववीर-१०३.-१०२। निश, निशा-सक्ञा ली. (सं. निशा] (१) रात्रि, रात | (२) मेष, वृष, मिथुन श्रादि चहु राशियां । निशांत--संजञा पु. [स. निशा + श्र॑त | प्रभात । निशाकर--संज्ञ पु. [सं.] चंद्रमा । निशाचर सज्ञा पुं. [सं.] ( १) राक्षस । (२) उल्ल्‌ । (३) चोर । वि-जो रात मं चले या विचरण करे । निशाचरी--सशा खी. [सं.] (१) राक्षसी । (२) कला । निशाचारी-सन्ञा पुं. [ सं. निशाचरिन ] (१) शिव, महादेव । (२) राक्षस । (३ उल्ल्‌ । (४) चोर | निशान-- संञा पुं [फा.] (१) चिह्न | (१) किसी पदार्थ से रकित चिह्न । (३) प्राकृतिक चिह्न या दाग | (४) विगत घटना था वस्तु सुचक चिह्ध । यौ.--नाम-निशान-- (१) शेष चिह्न । (२) दोषांश | (५) पता-ठिकाना । (६) लक्ष्य, निशाना | उ.-तीर चलावत शिष्य रस्खिावत धर निशान देखरावत--सारा १६० । (७) ध्वजा, पताका; भंडा । निशापति--सन्ञ पु. [सं | (१) चंद्र । (२) कपर । निशाता--सज्ञा पु [फा.] (१) लक्ष्य । (२) बह जिसे लक्ष्य करके कोई व्यग्य या प्राक्षेप किया जाय । निशानाथ-सक्ञा पु. [स.] (१) चंद्र । (२) कपुर । निशानी-संज्ञा स्त्री [ फा, ] (?) चिह्न, निशान । उ.--- आपुहि हार तोरि चोली वेद्‌ उर नख घात बना निशानी--१०५७ । (२) स्मृति-चिह्ध, यादगार । (३) निशान, पहचान । निशापति- सज्ञा पु. [ सं. | चंद्रमा । निशामुख-सकश् पृ. [ स. ] संध्या का समय । निशावसान- संज्ञ पुं. [ स. | प्रभात, तड्का | निशास्ता--संज्ञा पु. [ फा. ] भीगे गेहूँ का सत । निशि -संज्ञा स्त्री, [ स. | रात, रात्रि | उ,--निशि दिन হু सूर के प्रभु बिनु मरिब्रो तऊ न जात जियो--- २५८४५. |




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