विश्व इतिहास की झलक -भाग 1 | Viqs-v Itihaas Kii Jhalak- Vol I

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Viqs-v Itihaas Kii Jhalak- Vol I by पं. जवाहरलाल नेहरु - Pt. Jawaharlal Nehru

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका चार बरस हुए मेने, इस किताब का लिखना देहरादून-जेल में ख़त्म किया था । उसके कुछ दिन बाद यह अंग्रेज़ी में छपी थी। मेरी इच्छा थी कि यह हिन्दी और उर्दू में भी निकले । उसका कुछ प्रबन्ध किया भी, लेकिन दुर्भाग्य से उसमें उस समय काम- याबी नहीं हुई । में फिर जेल चला गया । अब मुझे खशी हे कि ये मेरे पत्र इन्दिरा के नाम हमारे देश की पोशाक में निकल रहे हैं । क़म्र तो मेरा है कि मेने इनको शुरू में विदेशी लिबास पहनाया । मुझे कुछ आसानी हई अंग्रेजी मं लिखने मं; क्योकि उसमें लिखने का अभ्यास अधिक था ओर विषय भी ऐसा था जिसमें ज्यादातर किताबें योरप की भाषाओं में हेँ ओर उन्हीको मेनं पढ़ा था । दुनिया के इतिहास पर किसीका भी कुछ लिखना हिम्मत का काम हं । मेरे लिए यह जुरंत करना तो एक अजीब बात थी, क्योंकि में न लेखक हूँ और न इतिहास के जाननेवालों में गिना जाता हूँ । कोई बडी पुस्तक लिखने का तो मेरा ख़याल भी नहीं था। लेकिन जेल के लम्बे और अकेले दिनों में में कुछ करना चाहता था और मेरा ध्यान आज- कल की दुनिया ओर उसके कठिन सवालों से भटककर पुराने जमाने मं दोडता ओर फिरता था । क्या-क्या सबक्र यह्‌ पुराना इतिहास हमें सिखाता हं ? क्या रोनी आजकल के अपिरे में डाखुता ह ? क्या यह सब कोई सिलसिला हे, कोई माने रखता हे, या एक यह्‌ बेमाने खेल हं जिसमें कोई क्रायदा-क़ानून नहीं, कोई मतलब नहीं, और सब बातें योही इत्तेफ़ाक़ से होती हैं ? ये ख़पाल मेरे दिमाग़ को परेशान करते थे, और इस परेशानी को दूर करने के लिए इतिहास को मेने पढ़ा और आजकल की हालत को समझने की कोशिश की । दिमाग में बहते हए विचारों को पकड़कर कागज पर लिखने से सोचने मं भी आसानी होती ह ओर उनके नये-नये पहलू निकलते हु । इसलिए म॑ने लिखना शुरू किया । फिर इन्दिरा की याद ने मुझे उसकी तरफ खींचा और इस लिखने में उसके नाम पत्रों का रूप धारण किया । महीने गुज़रे--कुछ दिनों के लिए जेल से निकला, फिर वापस गया। सर्दी का मौसम ख़त्म हुआ, बसन्‍्त आया, फिर गर्मी और बरसात । एक साल पूरा हुआ, दूसरा शुरू हुआ और फिर वही सर्दो, बसन्‍्त, गर्मी और चोमासा। लिखने का सिलसिला जारी रहा और हलके-हलके मेरे लिखे हुए पत्रों का एक पहाड-सा होगया। उसको देखकर में भी हैरान होगया । इस तरह से, क़रीब-क़रीब इत्तेफ़ाक़ से, यह मोटी पुस्तक बनी । इसमें हजार ऐब हैं, हज्ञार कमियाँ; लेकिन फिर भी में समझता हूँ कि इससे कुछ फ़ायदा भी हो




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