विश्व इतिहास की झलक -भाग 1 | Viqs-v Itihaas Kii Jhalak- Vol I
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
92 MB
कुल पष्ठ :
775
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका
चार बरस हुए मेने, इस किताब का लिखना देहरादून-जेल में ख़त्म किया था ।
उसके कुछ दिन बाद यह अंग्रेज़ी में छपी थी। मेरी इच्छा थी कि यह हिन्दी और उर्दू
में भी निकले । उसका कुछ प्रबन्ध किया भी, लेकिन दुर्भाग्य से उसमें उस समय काम-
याबी नहीं हुई । में फिर जेल चला गया ।
अब मुझे खशी हे कि ये मेरे पत्र इन्दिरा के नाम हमारे देश की पोशाक में निकल
रहे हैं । क़म्र तो मेरा है कि मेने इनको शुरू में विदेशी लिबास पहनाया । मुझे कुछ
आसानी हई अंग्रेजी मं लिखने मं; क्योकि उसमें लिखने का अभ्यास अधिक था ओर
विषय भी ऐसा था जिसमें ज्यादातर किताबें योरप की भाषाओं में हेँ ओर उन्हीको मेनं
पढ़ा था ।
दुनिया के इतिहास पर किसीका भी कुछ लिखना हिम्मत का काम हं । मेरे लिए
यह जुरंत करना तो एक अजीब बात थी, क्योंकि में न लेखक हूँ और न इतिहास के
जाननेवालों में गिना जाता हूँ । कोई बडी पुस्तक लिखने का तो मेरा ख़याल भी नहीं था।
लेकिन जेल के लम्बे और अकेले दिनों में में कुछ करना चाहता था और मेरा ध्यान आज-
कल की दुनिया ओर उसके कठिन सवालों से भटककर पुराने जमाने मं दोडता ओर
फिरता था । क्या-क्या सबक्र यह् पुराना इतिहास हमें सिखाता हं ? क्या रोनी आजकल
के अपिरे में डाखुता ह ? क्या यह सब कोई सिलसिला हे, कोई माने रखता हे, या एक
यह् बेमाने खेल हं जिसमें कोई क्रायदा-क़ानून नहीं, कोई मतलब नहीं, और सब बातें योही
इत्तेफ़ाक़ से होती हैं ? ये ख़पाल मेरे दिमाग़ को परेशान करते थे, और इस परेशानी
को दूर करने के लिए इतिहास को मेने पढ़ा और आजकल की हालत को समझने की
कोशिश की । दिमाग में बहते हए विचारों को पकड़कर कागज पर लिखने से सोचने मं
भी आसानी होती ह ओर उनके नये-नये पहलू निकलते हु । इसलिए म॑ने लिखना शुरू
किया । फिर इन्दिरा की याद ने मुझे उसकी तरफ खींचा और इस लिखने में उसके
नाम पत्रों का रूप धारण किया ।
महीने गुज़रे--कुछ दिनों के लिए जेल से निकला, फिर वापस गया। सर्दी का
मौसम ख़त्म हुआ, बसन््त आया, फिर गर्मी और बरसात । एक साल पूरा हुआ, दूसरा
शुरू हुआ और फिर वही सर्दो, बसन््त, गर्मी और चोमासा। लिखने का सिलसिला जारी
रहा और हलके-हलके मेरे लिखे हुए पत्रों का एक पहाड-सा होगया। उसको देखकर में भी
हैरान होगया । इस तरह से, क़रीब-क़रीब इत्तेफ़ाक़ से, यह मोटी पुस्तक बनी । इसमें
हजार ऐब हैं, हज्ञार कमियाँ; लेकिन फिर भी में समझता हूँ कि इससे कुछ फ़ायदा भी हो
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