भारतीय अर्थशास्त्र | Bhartiya Arth Shastra

Bhartiya Arth Shastra by आर० एन० सिंह -R. N. Singhहरिश्चन्द्र शर्मा -Harishchandra Jain

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आर. एन. सिंह - R. N. Singh

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हरिश्चन्द्र शर्मा -Harishchandra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आथिक विकास वी सू्िका | & वित्रित्सा एव स्वास्थ्य तथा अन्य सामाजिक सुविधाओं की व्यवस्था इस प्रकार की पूंजी विनियोजन के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं । (३) भतिश्ञौल अवस्था (116 1916-०)-यह आधथिक वित्राम का तीसरा चरण है। সী रास्टव के शब्दों म, “यह एक मध्यान्तर काल है, जिसम विनियोग की दर इस प्रकार बढती है, जिमम प्रति व्यक्ति दास्तवित्र उत्पादन में वृद्धि होती है और इस आरम्मिक वृद्धि के माथ ही साथ उत्पादन विधियों म क्रान्तिकारी परिवर्तन होते हैं ।” इसत्रा तातये यह है वि बर्थ व्यवस्था एवं ऐसी अवस्था में पहुँच जाती है जबकि विकास स्वय-उद्भुत (५0॥0०ए४70०) होने लगता है, उसके लिए विशेष प्रयललो वी आवश्यक्ता नहीं पडती। प्राविधिक एवं प्रौद्योगिक (६8०७४700- 198121) श्रयति वा प्रभाव हृषि तथा औद्योगिक क्षेत्रों में स्पप्ट हष्टियोचर होने लगता है भौर उत्पादन बी मात्रा तथा व्िस्म में आशातीत सुधार दिखायी पडता है । गतिशील अवस्था में प्राय तीन महत्त्वपूर्ण तथ्य प्रकट होते हैं (क) देश में उत्तादन विनियोजन वी दर राष्ट्रीय आय के दम प्रतिशत अथवा उप्तसे अधिक हो जाती है । (ख) निर्माणिक्ारी उद्योगो का तीव्र गत्तिमे विमात होने लगता दै। (ग) एक ठेमा राजनीतिक, सामाजिक तथा मस्यागत ढांचा स्वापितदहो जाता है जो आधुनिक क्षेत्र मे विकास की भावना को प्रोत्माहित करता है तथा विकास को गति प्रदान करता है ।' गतिशील अवस्था क अन्तर्गत देश में कृषि एव औद्योगिर व्यवत्तायों की यथ्थेप्ट प्रगति हो जाती है और उनसे समुचित लाभ प्राप्त होन लगत हैं। सक्लेप्र में, इस प्रकार की परिस्थितियाँ मिमित हो जाती हैं कि देश का अर्थतन्तर भाधार रुप में स्वस्थ एवं सवल दिखाई पढने लगता है मौर भविष्य वी प्रगति बुण्ठित होत का कोई भय नही रहता । (४) वरि¶ववना को ओर (२271\€ {० 2131ए 119} --गनिगीत्त अवस्था तक पहुँच जाने पर देश के अर्थतन्तर मे एक विचित हृतचल-सी प्रवट होम लगती है और प्रौद्योगिक एवं वैज्ञानिक माघनों का उपयोग इस सीमा तक होन लगता है कि देश में किसो भी वस्तु का उत्पादन आवश्यक मात्रा में करना सम्भव हो जाता है। परिपत्रवता की दक्षा में पूंजी विनियोजन की माता राष्ट्रीय आय वी २० प्रतिशत तक हो जाती है ओर अर्थततन्त्र वी सबलता के कारण अनेक नये उद्योगों को स्थापना हो जाती है । इन उद्योगों की उत्तादन स्तर में अन्तरराप्ट्रीय उत्पादन से स्पर्डा करने की क्षमता होती है । एरिएक्न क्षर्य वएबस्या की अफिक ते एस्कर्प देस से जन्य देके श्ट জানান লিনা समाष्त हो जाती है और उसका व्यवत्माय केवच आ्िक आधार पर किया नाता है, नर्थात्‌ देना माल जिम्त्ा निर्माण विशेष लाभदायक नहीं है, आयात कर लिया जाता है और उच्चस्तरीय प्रौद्योगिक एवं वैज्ञानिक साधनों की सहायता से उत्पन माल निर्यात क्या जाता हैं। वस्थुत्त परिपक्व मस्या प्राप्त तर लेव वाला देश आर्थिक हृष्टि से यवेप्ट सतल एव सम्पन्न हो जाता है 1 (५) अधिकाधिक उपभोग की अयस्था (51886 ० घाष्ठा (155 (एशाइप्रगए/01)-- परिषवत अर्थ-व्यवस्था में सामान्य जनता की उपभोग सम्बन्धी सभी आवश्यकताओं वी यूति सामान्य श्रम द्वारा हो जाती है और उपभोग का स्तर प्राय ऊँचा हो जाता है। यह अवस्था प्राप्प कर लेने के पश्चात समाज का प्रयेर व्यक्ति उपभोग की उच्चतम एवं तिशिष्ट सेवाएँ उपलब्ध करने का ५ +€ लरत छा चरण: शणटाइ वाट 01 00178153815 50০581 800.1030015010081 হিস আত €९710415 116 वप्रा४15€ 19 60375107 77 75पैदा प ६५१०7 27ते ए0लणा३्‌ ली, (9६६ छीं भाव 1४65 10 हाएजएएवी 1 0पाश8098 एीवाबटाहर 7 १९१९५५४ ५५९ 0910 ४४. ४, 516९5 गु हव्या (णा




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