रवीन्द्र कविता कानन | Raviindra Kavitaa Kaanan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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No Information available about श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रवीन्द्र-कविता-कानन ও
ठाकुर-वंश भट्टनारायण का वंश है। भट्टनारायण उन पांच कान्यकुब्जोंमें
हेँ जिन्हें आदिशूरने कन्नौजसे अपने यहां रहनेके लिए बुलाया था और बंगालमें
खासी सम्पत्ति देकर उन्हें प्रतिष्ठित किया था | संस्कृत के वेणी-संहार नाटकके
रचयिता भद्रनारायण यही थे । जिनका नाम पितुपुरुषोकी वंश-सूचीमें पहले
आया है, वे पुरुषोत्तम यशोहर जिलेके दक्षिण डिहोके रहन वाले पिराली वंशके
एक ब्राह्मणकी' कनन््यासे विवाह करके पिराली हो गये थे। ये यशोहरमें रहने
भी लगे थ ।
इसी वंशके पंचानन यशोहरसे गोविन्दपुर चले आय । यह मौजा हुगली
नदीके तट पर बसा है। यहाँ नीच जातियाँ ज्यादा रहती थीं। ये उन्हें
“ठाकुर” कहकर पुकारती थीं । बंगालमें ब्राह्मणों के लिये यह सम्बोधन आम-
फहम है | इस तरह, पंचाननके बादसे इस वंशकी यही “ठाकुर” उपाधि चली
आ रही है ।
गोविन्दपुरमें जब पंचानन पहले पहल गये और बसे, उस समय भारतमें
अंग्रेज पैर जम। ही रहे थ । वहाँके अंग्रेजोंसे पंचाननकी जान पहचान हो गई ।
अंग्रजोंन उनके लड़केको जिनका नाम जयराम था, २४ परगनंका जमींदार
मुकरेर कर दिया । जयरामन कलकत्तेके पथरिया हट्ट में एक मकान बनवाया
और कुछ जमीन भी खरीदी । १७५२ ई० में उनका देहान्त हो गया। उनके
चार पुत्र थे । उनमें उनके दो लड़कोंने, नीलमणि और द्पंनारायणने कलकत्ते
के पथरिया हट्टा और जोड़ासाकमें दो मकान बनवाय । इस बंशकी सम्पत्तिका
अधिक भाग रवीन्द्रनाथके पितामह द्वारकानायन स्वयं उपाजित किया था और
उनके ऋणके कारण उसका अधिकांश चला भी गया ।
इस बंशका धर्म पहले शुद्ध सनातन धर्म ही था। उस समय ब्राह्म-समाज
बीजरूपमें भी न था। इसके प्रतिष्ठाता रबीन्द्रनाथके पिता महर्षि देवेन्द्रनाथ
थे । इस समाजकी प्रतिष्ठा कई कारणोंसे की गयी थी । पहला कारण तो
यही है कि ब्राह्मण-समाजमं इस वंशकौ प्रतिष्ठा नथी। दूसरे इस অহা
लोगोंमें शिक्षा और संस्कृति बढ़ गयी थी । भावोंमें उदारता आ गयी थी ।
य विलायत-यात्राके पक्षमें थ। द्वारकानाथ विलायत हो भी आये थे। इन
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