रवीन्द्र कविता कानन | Raviindra Kavitaa Kaanan

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Raviindra Kavitaa Kaanan by श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रवीन्द्र-कविता-कानन ও ठाकुर-वंश भट्टनारायण का वंश है। भट्टनारायण उन पांच कान्यकुब्जोंमें हेँ जिन्हें आदिशूरने कन्नौजसे अपने यहां रहनेके लिए बुलाया था और बंगालमें खासी सम्पत्ति देकर उन्हें प्रतिष्ठित किया था | संस्कृत के वेणी-संहार नाटकके रचयिता भद्रनारायण यही थे । जिनका नाम पितुपुरुषोकी वंश-सूचीमें पहले आया है, वे पुरुषोत्तम यशोहर जिलेके दक्षिण डिहोके रहन वाले पिराली वंशके एक ब्राह्मणकी' कनन्‍्यासे विवाह करके पिराली हो गये थे। ये यशोहरमें रहने भी लगे थ । इसी वंशके पंचानन यशोहरसे गोविन्दपुर चले आय । यह मौजा हुगली नदीके तट पर बसा है। यहाँ नीच जातियाँ ज्यादा रहती थीं। ये उन्हें “ठाकुर” कहकर पुकारती थीं । बंगालमें ब्राह्मणों के लिये यह सम्बोधन आम- फहम है | इस तरह, पंचाननके बादसे इस वंशकी यही “ठाकुर” उपाधि चली आ रही है । गोविन्दपुरमें जब पंचानन पहले पहल गये और बसे, उस समय भारतमें अंग्रेज पैर जम। ही रहे थ । वहाँके अंग्रेजोंसे पंचाननकी जान पहचान हो गई । अंग्रजोंन उनके लड़केको जिनका नाम जयराम था, २४ परगनंका जमींदार मुकरेर कर दिया । जयरामन कलकत्तेके पथरिया हट्ट में एक मकान बनवाया और कुछ जमीन भी खरीदी । १७५२ ई० में उनका देहान्त हो गया। उनके चार पुत्र थे । उनमें उनके दो लड़कोंने, नीलमणि और द्पंनारायणने कलकत्ते के पथरिया हट्टा और जोड़ासाकमें दो मकान बनवाय । इस बंशकी सम्पत्तिका अधिक भाग रवीन्द्रनाथके पितामह द्वारकानायन स्वयं उपाजित किया था और उनके ऋणके कारण उसका अधिकांश चला भी गया । इस बंशका धर्म पहले शुद्ध सनातन धर्म ही था। उस समय ब्राह्म-समाज बीजरूपमें भी न था। इसके प्रतिष्ठाता रबीन्द्रनाथके पिता महर्षि देवेन्द्रनाथ थे । इस समाजकी प्रतिष्ठा कई कारणोंसे की गयी थी । पहला कारण तो यही है कि ब्राह्मण-समाजमं इस वंशकौ प्रतिष्ठा नथी। दूसरे इस অহা लोगोंमें शिक्षा और संस्कृति बढ़ गयी थी । भावोंमें उदारता आ गयी थी । य विलायत-यात्राके पक्षमें थ। द्वारकानाथ विलायत हो भी आये थे। इन




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