बुन्देलखण्ड की राष्ट्रीय चेतना में राष्ट्रकवि | Bundelkhand Ki Rastriya Chetana Me Rastrakavi
श्रेणी : हिंदी / Hindi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
110 MB
कुल पष्ठ :
296
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)_“बुन्देले हर बोलों के मुख हमने सुनी कहानी थी |
खूब लड़ी বালী নী লী জাঁজী বালী বালী শ্রী 1”
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, उनका अमर सेनानी तात्या टोपे, सागर के
स्वातंत्रय वीर मधुकर शाह आदि बुन्देलखण्ड की श्रंगार मंजूषा के वे.
अनमोल रत्न हे, जिन पर इस देश को अनंत काल तक नाज रहेगा ।
बुन्देलखण्ड का सांस्कृतिक, राजनैतिक शौीर्यपूर्ण इतिहास सदियों
पुराना हैं, जिसे समय की कलापूर्ण छैनियों ने बड़ी साधना के साथ गढ़ा .._
. और सँवारा है | पौराणिक कथाओं के आधार पर कहा जाता है कि इस
देश के उत्तर व दक्षिण भारत के रूप में वांटता हुआ विन्ध्याचल पर्वत
अपनी किशोरावस्था में अपने कुल गुरूऋषि रूऋषि अगस्त्य के आशीर्वाद से
उत्रोत्तर शक्ति शिखर पर आसीन हो रहा था | समय की गति के अनुसार `
उसकी उँचाई मे असाधारण वृद्धि होने से एसा प्रतीत होने लगा कि उसकी
অন্ত উজান आकाश को भी छेदकर संसार मेँ प्रलय करा रा देगी | इससे से `
संसार में खलबली मच गयी ओर देवताओं ने ऋषि अगस्त्य से इस आगामी
संकट से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की । ऋषिराज देवताओं को आश्वासन वि
देकर विन्ध्याचल के पास पहुँचे । अपने कुल गुरू के आगमन पर
विन्ध्याचल ने उनको साष्टांग प्रणाम किया । ऋषिराज ने उसे आर्शीवाद
देते हुए कहा कि वे दक्षिण यात्रा पर जा रहे हैं, जब तक वे वापिस न
लौटे, तब तक इसी तरह पड़ रहना । विन्ध्याचल पर्वत अपने कुलगुरू एलगुरू নী
आज्ञा का केसे उल्लंघन कर र सकता था ? ऋषि अगस्त्य आज ज तक अपनी
दक्षिण यात्रा से लौटे नहीं हैं और विन्ध्याचल आज भी उनके आगमन की [षि
प्रतीक्षा मे उसी तरह आडा लेटा हुआ है |
विन्ध्याचल के दक्षिण मेँ नर्मदा नदी की पावन धारा मध्यप्रदेश की.
जीवन रेखा है । विन्ध्य ओर सतपुडा के संधि स्थल पर अमरकंटक से
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