अनुरागरत्न | Anuragaratn

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Anuragaratn by नित्यानन्द जी महाराज - Nityanand Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ই ६८ ६६ १०० १०१ ৩৯, १०३. १०४ १०५ १०६ १०७ १०४८ १०६ ११० १११ ११२ ११३ ११४३ ११४ ११६ ११७ ११८ ११६ १२० वैदिक विद्वान्‌ बताते दें साकार देवता चार पद ऊयी रवि की लालिमा, जयादे इसे मेया उमगी महिमा उस्छपं की सुग्य-मूल विवाद किया है बिगाड़ों फो धिगाई गे सुधारों को सुधारेंगे यतत मारत क्षा रस मगधा उद्धरे म हाय जारहे ह र रजनीण निरकुश तूने दिननायक का आस किया हमारे रोने को सुनक छपा एकर দই ोलो-वोलो कैसे ्ोगा एेसी मूलो का सुधार रैंग रहा राग फे रय में तू फैसा वेरागी है ऊले उगल रहा उपदेश गढ़-गढ़ मारे ज्ञान-गपोढ़े गुण गान करें रस राज के यश-माजन सुकवि हमारे भारत फीन बदेगा হীন तुकपे होली के हद की खुद्ध~बुल खेलो फा भवक भारत की होली द उरते उद्धत्त उतत उतार धन छी धृल्ि उदाने बाले मत रोवे ललुश्चा ज्ञादक्षे ष्ठ थल मनोहर योत्ती विकराल कलेवर धार घरा पर धृम्नकेतु आये न विज्ञान फृल्ला न धिद्या फली प्य फैसे कुदिन अब श्राय गये करदे दूर दयालु महेश मुझ पे दारण दु गव पड़ा है भिग्बारी चरन অহী কীনা भारत देश मगल-मूल सदेश मुक्ति-वाता शकर है कर दानी मनमानी याँके विदारी की घाजी बैंसुरिया अब तो बने दारिकाधीश श्री जगदीश कहाने घात्मे पष्ट १८९ १८ १८३ १ লিট १६१ १६२८ ०११ २९२ २१४ २२९ २०५ ৯৯৭ २२६ ररे१ ५२४ २३२० >२य २४६ ০ २९१ ৫ २६५ २७२




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