श्री शुक सम्प्रदाय सिद्धान्त चंद्रिका | Shri Shuk Sampraday Siddhant Chandrika

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Shri Shuk Sampraday Siddhant Chandrika by शिवदयाल - Shivdayal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ভু 999৩28928৭2 2229১29৮555, | # ॥ ঘেনমউদ্ীদমু$ ) लोड श्रीशुकदेवउत्पत्ति: नमस्कारात्मकमङ्गलाचरणम्‌ । # शोके # ध्याना्स्यप्रमोधौम व्रहमानन्दं च वाक्यतः | । रविंदशंनाबाति श्रीशुर्क तं नमाम्यहम्‌ ॥ १॥ ८ 1 1] ॥ ) ५ अर्थ-जिनके ध्यान से प्रमु (श्रीषष्ण ) का घाम (गोखोक अमरलछोक ) और जिनके वचन से ब्रह्मानन्द ( कृष्णानन्द ) और जिनके दहन से. श्रीकृष्णरति (परेम) प्राप होता है, ऐसे श्रीशुकदेव भगवांत को नमस्कार करताहूँ ॥ ३ ॥ आंदोव्यासग्रहेस॒जन्मकथनं जातरंपयानं बने । अग्रेव्यासपराशरादिमहतां सिहासनेमंस्थितिः ॥ ब्रह्मानन्दलयंगतंस्य च पुन: श्रीकृष्णागाथारुचिः । श्रीमदव्याससुतस्य तस्य वरित कि किंनलोगी त्रप्‌ अर्प-प्रयम श्री व्यासजी के गृहमें जन्मका कथन जन्म | रे টা হ,০০০০০০০৬৮৩০০০৬৬ ॥ ६ फेते ही बनमें जानात्यास पराहारादि वीं के सामने (श्रीमद आगवदोपदेश के छिय्रे) सिंहासन पर विराजमान होना, ब्रह्मानंद मः ख्य होते हुये पर भी श्रीकृष्णणाया स॑ रुचि है, ऐसे श्री व्यासं सुत, ओऔशुकवेद के कोन कोन से चरित्र इस लोक -से तिराने वारे नदी द १ अयात्‌ सवै चरित्र है ॥ २॥ ` ক ध न्य्व




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