समीक्षा के मान और हिंदी समीक्षा की विशिष्ट प्रवृतियां | Samiksha Ke Maan Aur Hindi Ki Vishisht Pravratiyan

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Samiksha Ke Maan Aur Hindi Ki Vishisht Pravratiyan by प्रतापनारायण टंडन - Pratapnarayan Tandan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ | समीक्षा के मान ओर हिंदी स्मीज्ञा की विशिष्ट प्रव॒ृत्तियाँ শন तौत--२ ५२, कव्य कौतुक--३ ५३ ४ भेट्र नायक--३ ५ ३, हृदय दर्षण--२५३ ॥ कुँन्तक--३ ५३, रचना और काल--३५३, वक्रीक्ति काव्य जीवितम--ई ५३, काव्स का प्रयोजन+-३५४, काव्य में अलंकार तथा सलंका्यं--३ ५४, काव्य तथी साटित्य-- ३५४, साहित्य का रवहूप--३५,५, क्क्रोक्ति--२ १.५ स्वभावोक्ति निराकरणं--३५ ४५, मसहत्व--३२५०५ । मेहिम भट्ट--ई ५६, रचना और काल--३४६, व्यक्ति विवेक--३५६, वॉक्य का स्वेरूप--३५६, अर्थ प्रकार--३५७, ध्वनि का परार्थानुमान में अंनमवि--३५१, अर्थ व्यक्ति का लक्षण एवं भेद-+३५८, काव्य का स्वरूप--३५७, अभिधा स्थापता--रे श८, बहत्व--३ ५८ । भोज--३५९, रचना और काश--३ ४६९, सरस्वती कंठामरण--३५५९, एुंगार प्रकाश “३५९, वाड मर्य के भेद--३५९, काव्य, शास्त्र, इतिहास, काव्य शास्त्र, काव्येतिहास, शास्त्रेतिहास, श्रव्य काव्य--३६० । आशी:, नान्‍दी, नमस्कार, वस्तु निर्देश, अक्षिप्त, प्रुवा--२४० । फ्रबन्ध का स्वरूप--३६०, प्रबन्ध सं 5याँ--मुख, प्रतिमुख, गर्भ, अवमर्श, निर्वेहण, दृश्य कोब्य--३१६ १, दृश्य काव्य के भेद--लास्य, तांडव, घलिक, सम्पा, हल्लीसक कथा रासक--३६२ । अन्य भेद-वक्रोक्ति, रसोक्ति, स्वभावोक्ति--३६२। रस योजना की विभूतियाँ-भाव, जन्य, अनुबन्ध, निष्पत्ति, पृष्टि-संकर--३६२, हवास--३६२, आभास-- ३६२४ शम--३६२, शेष--३६२, विशेष--३६२, परिशेष--३६२, विप्रलम्भ--३६२, संभोग--२६२, बेष्टाएँ--२६२, परिशिष्टियाँ--२६२, निरुक्ति--३६२, प्रकीर्ण-३६२, प्रेम--३६२, पुष्टियाँ ३६२, नायिका नायक गुण--३६२, पाकादि--३६२, प्रेम भक्ति-- ३६२, नानालंकार संसूष्टि के प्रकार>३६२। प्रेम की महाऋद्धियाँ-नित्य नैमित्तिक, सामान्य, विशेष, प्रच्छन्न, प्रकाश, कृत्रिम, अक्ृत्रिम, सहज, आहाये, यौवनज तथा विखंमभज-३६२, प्रेम पृष्टिर्या-चक्षु प्रीष्ति, मनः संग, बारंबार संकल्प, प्रलाप, जागरण, कृशता, मन्य विषयों मे अरति, लज्जा, विसजैनः व्याचि, उन्माद, मूच्छां तथा जागरण-- হু ६३, रति--२३६३, रीति-२६४, रीति के प्रकार्व॑दर्भी, पांचाली, गौडीया, अवंतिका, ीटीया, तथा मागधी-३६४, अरीरमत्‌ दोष-३६५, मेद--शब्द प्रधान अरीतिमत्‌ दोष, अर्थ प्रधान अरीतिमत्‌ दोष, उमपः प्रवान अरीतिमत दोष-- ३६५ महत्व-३६६.।




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