गांधी श्रध्दांजलि ग्रन्थ | Gandhi Shradhanjali Granth

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Gandhi Shradhanjali Granth by डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन - Dr. Sarvpalli Radhakrishnan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मानव-जाति फो गाधीजी फा सदे १३ सवय है और विचारों का मनुप्य से, और इसलिए हम यह निश्चयपूर्वक नहीं कह सकते कि हमारे विचारो ने पूर्णं सत्य को अपने मे हजम कर लिया हैं । हमारे धामिक विचार कुछ भी क्यो न हो, हम सव एक शैल-शिखर पर चेढना चाहते है ओर हमारी आँखे उसी एक लक्ष्य की ओर लगी है । हो सकता है कि हम विभिन्न मार्गों का अनुसरण करें और हमारे मार्यदर्णथक भी अलग-अलग हो । जब हम चोटी पर पहुँच जाते है तो वहाँतक पहुँचानेवाले रास्तों का कोई मृत्य नही रहता। धर्म में प्रयत्त का विशेष महत्त्व हैं । भारत एक धर्मनिरपेक्ष राप्ट्र हैँ। इस व्याख्या का यह अवं कदापि नदी कि उसका एकमात्र उद्देश्य जीवन का ऐहिक सुख, सुविधाएं और सफठता ही है । इसका अर्थ यह है कि राज्य सभी धर्मो को अपने-अपने मतो के प्रकाशन, अभ्यास कौर प्रचार के लिए उस समय तक समान मौर निर्वाव अधिकार देगा जवतक कि उनके विध्वास और आचरण नैतिक सिद्धान्तो का उल्लंघन नही करते । सभी धर्मी के प्रति समान व्यवहार के सिद्धान्त से विविध धर्मानुयायियों पर पारस्परिक सहिष्णुता का दायित्व भी लागू होता है। असहिंप्णुता सकीर्णता का प्रतीकं है । जनवरी १९२८ मे गाधीजी ने अन्तर्राष्ट्रीय वन्च॒ुत्व स्घा के समुख भाषण देंते हुए कहा था, 'लवे अध्ययन और अनुभव के उपरान्त में इस निष्कर्ष पर पहुचा हूँ कि (१) सभी घर्म सच्चे है (२) सव धर्मो में कोई-न-कोई खराबी है ओर (३) सभी धर्म मुझे उतने ही प्रिय हे जितना मेरा हिन्दू धर्म । म अन्य मतो का भी उतना टी मादर करता जितना अपने मत का । इसलिए मेरे लिए वर्म-परिवर्तन का विचार्‌ ही असभव 'है। अन्य व्यक्तियों के लिए हमारी प्रार्थना यह नहीं होनी चाहिए, है भगवान्‌, उन्हे वही प्रऊाग दो जो मुझे दिया है , अपितु यह्‌ कि उन्हें वह प्रकाथ और सत्व दो जो उनके श्रेप्ठतम विकास के लिए आवश्यक है ।' मेरा धर्म मुझे वह सवऊुंछ प्रदान करता है जो मेरे आत्मिक उत्थान के लिए आवश्यक है, क्योकि यह मुझे उपासना धार्मिक पथ क्या इतना विशाल हो सकता है कि जो अपने सें उनके व्यापक सिद्धान्तों का समावेश करले या कोई भी चर्च-यद्धति इतनो वडो होगो कि वह उन्हें अपने में बन्द कर सके । यहूदी, ईसाई, हिन्दू, मुसलमान, पारसो, बौद्ध तथा कन्फ्यूसियत के अनुयायी का उनके हृदय में एक पिता की अनेक सतानों के समान स्वान है । डोक द्वारा लिखित दक्षिणी अफ्रीका में एक भारतीय देश-भकता ( १९०९ ), नामक पुस्तक के पृष्ठ ९० से।




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