मारवाड़ी व्यापारी | Marwari Vyapari

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Book Image : मारवाड़ी व्यापारी  - Marwari Vyapari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पु सबधा पर अग्रैजी प्रभाव बढता गया और किसी भी शासक के लिए अपने पडोसी राज्य के समता वो सैनिक सहायता दना असभव हो गया । सामतो के राज्य से बाहर जाने वे लिए शासक की अनुमति आवश्यक वर दी गई । इस प्रकार सामतों की शक्ति का अय आधार भी टट गया और उनका अपने शासक के विरुद्ध सगठित मोर्चा बनाना भी असभव हो गया 15 सामतो का प्रभाव कम करने के लिए उनको प्राप्त यायिक विशेषाधिकारो को समाप्त करने अथवा उनमे कमी करने का प्रयत्न अग्रेजी सरकार के सहयोग से आरभ हुआ । भारत मे अग्रेजी विधि प्रणाली लागू कर दिये जाने क बाद राजस्थान वे राज्यों में भी ऐसे परिवतन किये गये । इससे साम तो के यायिक अधिकार सी मित तथा समाप्त होते गय । बीकानेर राज्य में 1871 ई० मे आधुनिक ढग के दीवानी फोजदारी व माल के यायालय खुल गए और 1884 ई० मे नग्रेजी ढंग के कानून-कायदे लागू हो जाने के वाद सामान्य यायालयों को भी सामतां के विरद्ध अभियोग की सुनवाई बरन तथा उनके बिर्द्ध कुर्की के आदेश जारी करने के अधिकार मिल गये । यद्यपि राज्य में बडे सामत दीवानी मामलों म यायालयों मे उप स्थित न होने के विशेषाधिकार का उपभोग करते थे लेकिन उहे सामा यथ नागरिकों की भाति यायालया मे शुल्क देने को बाध्य क्या गया । राज्य म सामतो की परिवतित स्थिति का अनुमान उनके द्वारा 1872 ई० मे राज्य के शासक के विरुद्ध चाल्स बटन को वी गई कुछ प्रमुख शिकायता की सूची में लगाया जा सकता है. 1 फौजदारी मामलों मे दण्डित राजपुता भौर राठौडो को राज्य की सामाय जेला मे रखा जाने लगा. 2 दीवानी और फौजदारी और राजस्व अधिकार से वचित कर देन से उनका अपनी प्रजा में सम्मान कम हो गया 3 सामतो को अपनी सम्पत्ति बेचने और शगिरवी रथने तक के अधिकार सीमित कर दिये गये 128 सामतों की उद्दुष्डता तथा स्वतनता पर नियत्रण करन के लिए उनके आर्थिक विशेषाधिकारो को भी नियप्रित किया गया । अनेक सामतों को राज्य की खालसा भूमि पर से अपना अतिकमण समाप्त करना पडा और अनेक उद्दण्ड सामता को दण्ड देने के लिए उनकी वशानुगत जोगी रो को भी खालसा कर दिया गया अथवा उनमे बाफी कमी कर दी गई। बीकानेर में महाराजा सुरतरसिंह एवं रतनततिह के शासन मे अग्रेजो की सहायता से अनेक विद्रोही सामतों को उनकी जागी रा से बेदघल कर दिया गया लेकिन उचित क्षमायाचना और आाज्ञाकारिता का आश्वासन देने पर उ्ह ये जागीरें वापस भी कर दी गईं । 1831 में महाराजा रतनसिंह ने महाजन के सामत वेरीसाल वीदासर के सामत रामसिंह व घाहडवास के सप्रामतिह की जागीरें खालसा कर दी लेक्नि बाद मे उनकी आज्ञाकारिता का आश्वासन मिलने पर उह वापिस कर दी गइ । 1833 ई० मे इसी महाराजा ने कुमाणे सामत लालसिंह की जागीर को खालसा कर दिया । ९ पिता की मत्यु वे पचात नय सामत को उत्तराधिकार शुल्क के रूप में अपनी जागीर की वाधिक आय के बरावर खिराज शासक वो देना पडता था। ऐसे साम तो से भी जो वारपिक खिराज देने से मुक्त थे उत्तराघिकार शुल्क के रूप मे वापिक आय था एव तिहाइ नजराना लिया जाने लगा बीकानेर राज्य के महाजन जसाणा बाय सीधमुख कानसर विरकाली मंघाणा हरदेसर बनवारी साईसर व यारांबरा आदि जागीरो के सामन्तो ने नप्रेज एजेट को एक प्राथना पत्र दिया जिसम उन्होंने राज्य के शासव द्वारा लगाये गये भिन भिन आधिक प्रतिब धो का वणन क्या । जैसे उनके गाव को जब्त कर लेना नजरान दो रुप मे उनसे अनुचित धन बसूल करना और उन पर अनेक प्रकार के नय शुल्क लगाना आदि । सामता और शासवा वे मध्य टुए विभिन कौलमाना अनुबधा में दिय सामता के राजस्व वसूली के अधिकार भी शासक द्वारा सीमित करन बे प्रयत्ता थी आलोचना की गई। सामतो की भूमि अनुदान देन॑ के अधिकार का भी समाप्त वर दिया गया । वे किसी भी व्यक्ति को सासन और डोहली के नाम पर भूमि का अनुदान नही दे सकते थे 12 सामत्ता वा पहन व्यापारिया थी सुरक्षा हतु जो मुल्व लेने का अधिकार था वाद में यह अधिकार केवल शासकों का दे दिया गया। सामतो के विशेषाधिकारा वो मवल शासवी बी तुलना म ही नही अपितु उनके जागौरी क्षेत्र म रहने वाले लोगा वी दृष्टि मे भी बम वरन का भी प्रयत्न किया गया । पहले जागीरा के निवासी अपन जागीरदारों की स्वीडृति वे बिना अपना मूल निवास स्थान छोडवर बी अन्पण नहीं जा सकते थे किन्तु ए० जी० जी० सरकार हनरी लारेंस ने अपने आधीन समस्त रजीडेप्टा और एजेप्टा वा विशेष निर्देश दिया कि वे अपने राज्या थे. शासका पर दवाव डालकर सामता के इस विशेषाधिकार वा समाप्त बरवान था प्रयत्न परें 131




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